एक व्यक्तिने पूछा है कि आप अपने गुरुके एक ही प्रकारके सुवचनको बार-बार क्यों साझा करती हैं ?
हमारे श्रीगुरुके अमृतवचनोंमें, राष्ट्र, धर्म व अध्यात्मके वे महत्त्वपूर्ण सूत्र हैं, जिसे सभी हिन्दुओंको सदैव स्मरण रहना ही चाहिए । जैसे गणितके सूत्र स्मरण रखनेसे उस विषयके प्रश्नोंको सरलतासे हल किया जा सकता है, वैसे ही हमारे श्रीगुरुद्वारा प्रतिपादित सिद्धान्त यदि समाजको स्मरण रहे तो लौकिक और पारलौकिक दोनों ही जगतका कल्याण करना सरल हो सकता है । व्यष्टि और समष्टि जीवनके सूत्र बतानेवाले ऐसे सन्त आज हिन्दू समाजमें नगण्य ही हैं और उनके साधक इन सूत्रोंको अपने जीवनमें उतारकर व्यष्टि और समष्टि दोनों ही जीवनमें यशस्वी हो रहे हैं । उनके लेखनमें राष्ट्रधर्म, समाजधर्म, राजधर्मके अतिरिक्त साधना हेतु महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त प्रतिपादित किए गए हैं; इसलिए इसे बार-बार साझा करती हूं । वस्तुत: मैंने ऐसा पाया है कि वैदिक सनातन धर्मके सर्व मुख्य धर्मशास्त्रोंका सार, उनके अमृतवचनोंमें समाहित है; इसलिए इसे बार-बार साझा करनेकी इच्छा होती है ।
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