मार्च १२, २०१९
तीन तलाकके प्रायः आनेवाले प्रकरण यह सिद्ध करते जा रहे हैं कि सामाजिक कुरीतियोंसे उत्पन्न अपराध और रूढिवादितापर अंकुश लगानेके लिए विधान बना देना मात्र व्यापक समाधान नहीं हो सकता है । केन्द्र शासनद्वारा ‘तीन तलाक’पर अध्यादेश लाए जानेके पश्चात हैदराबादसे इसप्रकारका एक प्रकरण उजागर हुआ है ।
२२ वर्षीय महिला फराह फातिमाका कहना है कि उसके पतिने ‘व्हाट्सएप्प’केद्वारा उसे तीन तलाक दिया है । आरोपी पतिक अभिज्ञान यासीर सिद्दकीके रूपमें किया गया है, जो हैदराबादके मीर आलम मंडी कर रहनेवाला है; परन्तु वर्तमानमें अमेरिकामें रह रहा है । विवाह प्रमाणपत्रके अनुसार, दोनोंका विवाह चलभाषके माध्यमसे हुआ था ।
फातिमाके पतिने ‘व्हाट्सएप्प’केद्वारा उसे तलाक दे दिया । ‘व्हाट्सएप्प’ सन्देश मिलनेके पश्चात महिलाने अमेरिका जानेका और अपने पतिसे मिलनेका निर्णय किया; परन्तु जब वह अमेरिकाके सैन फ्रांसिस्को विमानतलपर पहुंची तो उसे बन्दी बना लिया गया । ‘इमिग्रेशन ऑथरिटी’द्वारा यह जानकारी दी गई है कि अब वह सिद्दकीकी पत्नी नहीं रही । यह जानकारी मिलते ही महिला अचम्भित रह गई ।
फातिमाने बताया कि वह २४ दिनोंतक आप्रवासन संरक्षणमें (इमिग्रेशन कस्टडीमें) रही । १२ फरवरीको वह अमेरिका पहुंची थी और ९ मार्चको भारत वापस लौटी । जब उसे विमानपर लाया गया तो उस समय उसके हाथों व पैरोंमें बेडियां बांध दी गई थी !
फातिमाने आगे बताया कि वह अपने पतिके साथ २ बार अमेरिका गई थी । कुछ माह पूर्व जब वह भारतमें थी, तब उसे एक संदेश मिला कि वह (पति) उसे (महिला) तलाक दे चुका है । उन दोनोंके मध्य हुए ‘व्हाट्सएप्प’में पतिने महिलाको कहा था कि यदि वह चाहती है तो उसके विरुद्घ एक परिवाद भी प्रविष्ट करवा सकती है । इस मध्य तलाकको लेकर किसी कागदपर (कागजपर) हस्ताक्षर भी नहीं किया गया था !
यासीर सिद्दकी और फ़राह फातिमा दोनोंका विवाह ३ मार्च २०१६ को हुआ था । १ जून २०१६ को तेलंगाना राज्य वक्फ बोर्डद्वारा जारी किए गए विवाह प्रमाण पत्रके अनुसार दोनोंका विवाह चलभाषपर हुआ था । महिलाने आरोप लगाया है कि उसके पतिका किसी और महिलाके साथ सम्बन्ध है, जिस कारणसे उसने तलाक दिया है ।
“जहां एक ओर अग्निदेवको साक्षी मानकर सात फेरोंके साथ पवित्र बन्धनमें बांधकर मोक्षकी ओर अग्रसर करनेवाला सनातन धर्म और कहां एक ओर चलभाषपर विवाह और ‘व्हाट्सएप’पर तलाक !! ऐसा प्रतीत होता है, जैसे विवाह नहीं महिलाओंके शोषण करनेका माध्यम हो, जिसमें अबला नारीको मरनेके लिए छोड दिया जाता हो और इस जघन्य अपराधको ऋषियोंके देश भारतमें संरक्षण दिया जा रहा है, इसपर विश्वास करना अत्यधिक कठिन है ! हमारे राजनेता महिला-महिला करते हैं और उनकी रक्षा हेतु कुछ नहीं कर पाते हैं ! न ही हिन्दू महिलाके लिए और न ही मुस्लिम महिलाके लिए ! चाहे कोई भी शरियत कुछ भी कहता हो; परन्तु नारियौंको पूजनेवाले देशमें ऐसे जघन्य कृत्यको होने देकर राजनेता महापापके भागी बन रहे हैं । राजा व प्रशासनका कर्त्तव्य है कि वह अपने राज्य अथवा देशमें फैली कुरीतियोंका अन्त करें, यदि वह मूक दर्शक बनकर देखता है तो वह भी धर्मान्धोंकी भांति नरकका भोगी होता है !”- सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ
स्रोत : ऑप इण्डिया
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