अक्तूबर १७, २०१८
भारतके कई मन्दिरोंने परिधान सम्बन्धित नियमावली (ड्रेस कोड) दिए हैं, कुछ इसका समर्थन करते हैं और कुछ इसका विरोध करते हैं । गोवाके से कैथेड्रल गिरिजाघरमें एक महिलाको इसलिए प्रवेश नहीं मिला; क्योंकि महिलाने बिना आस्तीनकी पोशाक (स्लीवलेस ड्रेस) पहन रखी थी । इसके अतिरिक्त हम्पीमें १५ वीं शताब्दीका विरुपक्ष मन्दिर इस सूचिमें सम्मिलित होने वाला नवीन मन्दिर हो सकता है, जहां भक्तोंको इस नियमावलीका पालन करना होगा । मन्दिर प्रशासनने शासनसे वस्त्र नियमावली (ड्रेस कोड) लागू करनेकी मांग की है । ‘द इकॉनोमिक टाइम्स’के अनुसार हम्पीमें विरुपक्ष देवालयके कार्यकारी अधिकारी प्रकाश रावने कहा, “गत माह (सितम्बर, २०१८) बलारी सहायक आयुक्तके माध्यमसे उप आयुक्तको एक नवीन प्रस्ताव भेजा गया था । स्थानीय लोगोंका कहना है कि लोग अयोग्य वस्त्र पहनकर देवालय जाते हैं !”
उन्होंने कहा कि यदि पवित्रताको बनाए रखा जाना है तो यह लागू करना आवश्यक है । लोगोंको यहां प्रायः छोटे वस्त्र पहने देवालयमें देखा जाता है । यह एक प्रमुख देवालय और पूजाका एक महत्वपूर्ण स्थान है । पूजा और अन्य सम्बन्धित गतिविधियां पूरे दिवस की जाती हैं ।
यदि एक वस्त्र नियमावली (ड्रेस कोड) लागू किया जाता है, तो पुरुषोंको पायजामा, धोती, कुर्ता, शर्ट पहननेकी अनुमति दी जाएगी और महिलाओंको बिना आस्तीनके वस्त्र पहननेकी अनुमति नहीं दी जा सकती है । केवल पूरी लम्बाई वाली पतलूनकी अनुमति होगी ।
“ हिन्दू विषयक प्रत्येक बातोंपर समानताका ज्ञान देने वाले बुद्धिजीवी क्या अब गिरिजाघरके इस प्रकरणपर कुछ कहेंगें ? और हिन्दुओं ! देवालयका देवत्व बनाए रखने हेतु प्रत्येक हिन्दूने पाश्चात्य तामसिक वस्त्र त्यागकर सात्विक वस्त्रोंको धारण रखना चाहिए !”- सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ
स्रोत : जनसत्ता
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