कुछ भाजपाके प्रबुद्ध एवं आयुर्वृद्ध नेतागण शारीरिक अस्वस्थताको कारण बताकर इस बार मन्त्रीपद स्वीकार नहीं करना चाहते हैं, ऐसा उनलोगोंने केंद्र शासनको सन्देश दिया है | वस्तुत: यदि शासकीय चाकरीसे (सरकारी नौकरीसे) सेवानिवृत्त होनेका कार्यकाल ५८ से ६५ वर्ष है तो राजनीतिमें भी ऐसा नियम क्यों नहीं लागू होना चाहिए ? पूर्वकालमें राजा ५० वर्ष पश्चात ही अपने पुत्रको सिंहासनपर आसीनकर, उसे कुछ समय उसका मार्गदर्शन कर, उन्हें योग्य मन्त्रीगणोंके संरक्षणमें छोडकर वन चले जाते थे तो आजके नेतागण समय रहते ही युवावर्गको आगे क्यों नहीं आने देना चाहते हैं, ऐसा वे अन्तर्मुख होकर चिंतन करें ? आजके अधिकांश उच्च राजकीय पदों (राजनीतिक पदोंपर) ६२ वर्षसे अधिक आयुके नेतागण पदासीन हैं ! ध्यान रहे, योग्य नेता उसे कहते जो अपने जैसा और नेता समय रहते, निर्माणकर, उसे पदासीन कर सकें ! कुछ सत्तारूढ नेतागणको तो हाथ पकडकर राजनीतिक मंचपर या कार्यक्रम स्थलपर लाया जाता है, ऐसे नेतागण कितनी कुशलतापूर्वक अपने कार्य करते होंगे, किंचित सोचें ! जब एक भृत्य(चपरासीका) कार्यकाल निर्धारित होता है तो राजनेताओंका क्यों नहीं होना चाहिए ? वस्तुत: नेताओंने स्वयं ही प्रयास करना चाहिए कि ६० से ६५ वर्षके पश्चात राजनीतिमें पदोंके मोहका त्याग कर मात्र अपने अनुभवोंसे युवा नेताओंका मार्गदर्शन कर अगली पीढीके नेताओंका निर्माण करे ! प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदीने भी अपने जैसे किसी युवा नेताको या जिनकी आयु ५० वर्षसे कमकी हो, उन्हें भाजपाके शीर्ष नेतृत्व हेतु अभीसे पूर्वसिद्धता करनी चाहिए और योगीजी जैसे कर्मनिष्ठ और धर्मनिष्ठोंको केंद्रीय मंत्रिमंडलमें स्थान देना चाहिए ! वस्तुत: आज भाजपामें मोदीजीके अतिरिक्त और कोई नेता है ही नहीं जिसकी इसे देशकी जनतापर पूर्ण आस्था हो, कोई भी पक्ष यदि व्यक्तिनिष्ठ हो जाए तो उस व्यक्तिके पश्चात, पक्षका अस्त्तित्व अधिक समय नहीं रहता ! श्री ज्योति बसु एवं बुद्धदेवके पश्चात बंगालमें साम्यवादियोंका क्या हाल हुआ ?, इससे भाजपाके शीर्ष नेतृत्व अवश्य कुछ सीख लें एवं युवाओंको शीर्ष नेतृत्व हेतु तैयार करें !
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