प्रार्थना


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भक्तियोग अनुसार साधना करनेवाले सभी साधकके लिए प्रार्थनाका विशेष महत्त्व होता है । प्रार्थना ईश्वरके साथ जुडनेका एक सरल और सहज साधन है । जब हम प्रकर्षताके साथ ईश्वरसे कुछ विनती करते हैं उसे प्रार्थना कहते हैं । प्रार्थनाको यदि सरल शब्दोंमें उल्लेख करें तो यह ईश्वरसे संवाद करनेका एक सूक्ष्म माध्यम है ।

प्रार्थनाके भी दो प्रकार होते हैं –

सकाम प्रार्थना अर्थात जब कोई व्यक्ति अपनी किसी विशेष इच्छा पूर्ति हेतु ईश्वर या अपने इष्टदेवतासे निवेदन करता है उसे सकाम प्रार्थना कहते हैं । सकाम प्रार्थनासे आध्यात्मिक प्रगति नहीं होती, इसके विपरीत उस इच्छाको पूर्ण करनेमें हमारी साधना खर्च हो जाती है ।

निष्काम प्रार्थना अर्थात जब कोई साधक अपनी साधनामें आनेवाली अडचनको दूर करने हेतु, या अनिष्ट शक्तिसे रक्षण हेतु या मात्र ईश्वरीय कृपा पाने हेतु प्रार्थना करता है उसे निष्काम प्रार्थना कहते हैं । ऐसी प्रार्थनासे हामरी आध्यात्मिक प्रगति होती है । राष्ट्र एवं धर्म रक्षण हेतु भी की गई प्रार्थना निष्काम प्रार्थनाकी श्रेणीमें आती है; क्योंकि इसमे ‘बहुजन हिताय और बहुजन सुखाय’की भावना होती है ।

सगुण और निर्गुण प्रार्थना
प्रार्थनाके भी सगुण और निर्गुण स्तर होते हैं । जब प्रार्थना शब्दके माध्यमसे हो, उसे सगुण प्रार्थना कहते हैं और प्रार्थनामें मात्र शरणागति और कृतज्ञताका भाव हो और वह निःशब्द हो, उसे निर्गुण प्रार्थना कहते हैं । साधारणतया सन्तोंकी प्रार्थना निर्गुण स्तरकी होती है ।

दूसरोंके लिए प्रार्थना कब करनी चाहिए ?


जब हम किसी व्यक्तिके कष्ट दूर करने हेतु प्रार्थना करते हैं तो यदि हमारा आध्यात्मिक स्तर ६०% से कम हो तो हमारी साधना द्रुत गतिसे व्यय होती है; क्योंकि क्षमता न होते हुए भी हम या तो उस व्यक्तिके प्रारब्धमें हस्तक्षेप कर रहे होते हैं या उस व्यक्तिको कष्ट देनेवाली अनिष्ट शक्तिसे बचानेका प्रयत्न कर रहे होते हैं, दोनों ही स्थितिमें हमारी साधना खर्च हो जाती है । अतः अध्यात्मिक क्षमता न होते हुए भावनामें बहकर दूसरोंके लिए प्रार्थना करना अयोग्य है । इसके विपरीत आध्यात्मिक क्षमता बढाकर, हम मात्र अपनी संकल्प शक्तिसे अनेकका कल्याण कर सकते हैं ! हमारे ऋषि, मुनि और सन्तोंने ऐसे अनेक प्रार्थनाएं लिखी हैं, जिसे हम स्त्रोत्र कहते हैं, उसमें उनके संकल्प समाहित होनेके कारण वे चिरन्तन फलदायी होते हैं ।

प्रार्थनाका यशस्वी होना, प्रार्थना करनेवालेके भावपर निर्भर करता है । प्रार्थना सूक्ष्म युद्धका एक प्रभावी माध्यम है ।
वर्तमान समयमें जब अनिष्ट शक्तिका कष्ट अपने चरमपर है, ऐसे कष्टोंके निवारण हेतु प्रार्थना साधनाका एक उत्तम माध्यम है । यदि नामजप न हो तो मात्र प्रार्थना करनी चाहिए । अनिष्ट शक्तिसे सूक्ष्म युद्ध करनेका एक सरल उपाय प्रार्थना और नामजप है ।

प्रार्थनाको दिनचर्याका अविभाज्य अंग बनाएं
प्रार्थना ‘अधिकसे अधिक’ करनी चाहिए अर्थात प्रत्येक कृति यदि प्रार्थनासे आरम्भ हो और कृतज्ञतासे समाप्त हो तो समझ लें कि हमारी सम्पूर्ण दिनचर्या यज्ञकर्म बन गई, जिसमें सारे कर्मफल जलकर भस्म हो जाते हैं । प्रार्थना करते समय एक आराध्यका ध्यान करें, जिससे एकाग्रता और भाव दोनोंमें वृद्धि शीघ्र हो सके ।

प्रार्थना हम कभी भी, कहीं भी, किसी भी स्थानपर, किसी भी भाषामें कर सकते हैं । – तनुजा ठाकुर

 

 



One response to “प्रार्थना”

  1. vanamamalai says:

    Thanks Madam you have given beautiful suggestion regarding prayer. It became a part of my life always i am chanting the name of God.

    Thank God and Thanks once again to you.

    Please send these kind of info to my email address.

    with ward regards

    vanamamalai

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