शुभकामनाएं मध्य रात्रिमें क्यों नहीं दें ?


संध्या कालके आरम्भ होते ही रज तमका प्रभाव वातावरणमें बढने लगता है; अतः इस कालमें आरती, संध्या इत्यादि करते हैं और इस कालमें किए गए धर्माचरण, हमें उस रज-तमके आवरणसे बचाता है; परन्तु आजकल पाश्चात्य संस्कृतिके अंधा अनुकरण करनेके चक्रव्यूहमें फंसे हिन्दू इन बातोंका महत्त्व नहीं समझते हैं |
मूलतः हमारी भारतीय संस्कृतिमें कोई भी शुभ कार्य मध्य रात्रि नहीं किया जाता है; परन्तु वर्तमान समयमें एक पैशाचिक कुप्रथा आरम्भ हो गयी है और  लोग मध्य रात्रिमें ही शुभकामनाएं देते हैं और फलस्वरूप उन शुभकामनाओंका कोई प्रभाव नहीं पडता है, जैसे पाश्चात्य संस्कृति अनुसार नव वर्ष मनाते हैं और सभी लोग मध्य रात्रिमें ही नए वर्षकी शुभ कामनाएं देने लगते हैं | इसीप्रकार जन्मदिन या विवाह आदिके वर्षगांठकी भी शुभकामनाएं मध्य रात्रि देनेका अनुचित प्रचलन आरम्भ हो चुका है यह सब समाजमें धर्मशिक्षण नहीं दिया जाता है उसीका परिणाम है | दुःखकी बात यह है कि आजकल गांवमें भी महानगरों समान सब कुछ होने लगा है |
हमारी भारतीय संस्कृति तमसे रज और रजसे सत्त्व और अंतत: त्रिगुणातीत होनेका प्रवास सिखाता है; परन्तु आज सात्त्विकता क्या है, यही अधिकांश हिन्दुओंको पता नहीं है |-तनुजा ठाकुर



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