जब भी मेरे लेखोंके कुछ नूतन पाठकसे बात होती है तो वे कहते हैं की आप जो लिखती हैं वह ऐसा लगता है कि जैसे मात्र मेरे लिए ही लिखा गया हो ! वस्तुत: यह सब हमारे श्रीगुरुके आशीर्वादका परिणाम है ! उन्होंने २००५ में जब मैंने अपनी कुछ अनुभूतियां लिखकर उन्हें भेजी थी तो उन्होंने कहा था कि आपकी लेखन शैली बहुत अच्छी है, ऐसा लगता है जैसे आप बात कर रही हों, और २०१६ में उन्होंने पुनः आशीर्वाद देते हुए कहा था कि आप लिख सकती हैं इसलिए लिखें, आपके शरीरमें न रहनेपर भी ये लेख लोगोंका मार्गदर्शन करेंगे ! तो जब साक्षात परमेश्वर स्वरूपी श्रीगुरुको कुछ अच्छा लगे या उनकी आज्ञा हो तो ऐसे लेखोंको पढनेवालोंको ऐसी अनुभूतियां होना सामान्य सी बात है ! इसीको तो गुरुका संकल्प कहते हैं |
Leave a Reply