साधकोंको पूर्व सूचना देकर भगवानजी मेरा इस प्रकार कार्य सरल कर देते हैं !


बंगालके एक वरिष्ठ बंगाली प्रशासनिक अधिकारी गुरुपूर्णिमासे पूर्व ‘उपासना’से जुडे । उनका आध्यात्मिक स्तर, व्यष्टि साधना और भाव तीनों ही अच्छा है । वे गुरुपूर्णिमासे एक माह पूर्व ही जुडे थे, मैंने उन्हें गुरुपूर्णिमामें कुछ दिवस पूर्व सूचना दी कि वे दिल्लीकी गुरुपूर्णिमा कार्यक्रममें उपस्थित रहें और उन्होंने आज्ञापालन किया ।

वे अत्यधिक व्यस्त रहते हैं; अतः रात्रिमें नौसे ग्यारह प्रतिदिन अपनी व्यष्टि साधना करते हैं । उनके भावके कारण उन्हें अनुभूतियां भी हो रही हैं । जब वे गुरुपूर्णिमामें आश्रम आए थे, तो आश्रममें रात्रिमें उन्होंने भोजनके पश्चात् अपने बर्तन स्वयं धोए, रात्रिमें साधकोंको सोने हेतु जब बिछावन लगाया जा रहा था तो उन्होंने उसमें भी सहायता की अर्थात् उनके वर्तनसे वे अपनी सहजता और विनम्रताका परिचय दे रहे थे । वे मेरा चरण स्पर्श करना चाहते थे, मैंने उन्हें मना किया तो उन्होंने एक बार भी हठ नहीं किया, जबकि मुझे ज्ञात था कि वे मात्र मेरे चरण स्पर्श करने हेतु ही कोलकातासे दिल्ली आए थे, यद्यपि जाते समय उनके मनकी तीव्र इच्छा मुझे पूर्ण करनी पडी !  उनकी कुछ जिज्ञासाएं थीं, उन्होंने उसे भी बडी विनम्रतासे पूछीं, अब वे बंगालके प्रबुद्ध वर्गमें ‘उपासना’का प्रसार कर रहे हैं ।

कुछ दिवस पूर्व उनका दूरभाष आया था, मैंने बात ही बातमें उनसे कहा कि नामजप आप करने ही लगे हैं, धर्मप्रसारकी सेवा भी आरम्भ कर दी है; अतः अब मासिक अर्पण भी करना आरम्भ करें । वे यह सुनकर आश्चर्य चकित हो गए और मुझसे कहने लगे यह तो मुझे विश्वास नहीं हो रहा है, मैंने पूछा क्यों ? – साधनाका तो अर्थ ही है – तन मन और धनका त्याग ! वे कहने लगे – ऐसी बात नहीं है, यह तो मुझे भी ज्ञात है, एक सप्ताह पूर्व मैं दिल्ली आया था; परन्तु अत्यधिक व्यस्तताके कारण मैं आपसे नहीं मिल पाया; अतः मैं अत्यधिक निराश था, जब मैं दिल्लीसे कोलकाता जाने हेतु विमानमें बैठा तो मैं आपको स्मरण कर नमस्कार कर आकाशकी और देख रहा था और अपनेको कोस रहा था कि तभी मुझे भान हुआ कि ईश्वर मुझसे कह रहे हों कि अब मासिक अर्पण करना आरम्भ करो और आपने भी वही कहा और मेरी भी यही इच्छा हो रही थी यह सब सुनकर मैं अत्यधिक आनंदित और आश्चर्यचकित भी हूं ।

वैसे मैं आपको बता दूं मैंने उन्हें मात्र ५०० रूपये अर्पण करने हेतु कहा है; क्योंकि जिसकी जितनी अर्पण करनेकी सिद्धता होती है मैं उन्हें उतना ही अर्पण करनेको कहती हूं, मेरा कार्य किसीके अर्पणसे नहीं चलता, अपितु मेरे गुरुके संकल्पसे चलता है और मेरे गुरुकार्य हेतु निमित्त कोई भी बन जाता है; परन्तु जैसे एक मां अपने बच्चेको एक-एक शब्द बोलना सिखाती है, उसे चरण-चरण चलना सिखाती है उसी प्रकार हमारे गुरुने हमें साधकत्व वृद्धिके छोटे-छोटे चरण सिखाए हैं और उसे सभी साधक आत्मसात् कर सकें, इसका प्रयास मैं अवश्य  करती हूं ।-परात्पर गुरु – तनुजा ठाकुर (१.११.२०१४)



Comments are closed.

सम्बन्धित लेख


विडियो

© 2021. Vedic Upasna. All rights reserved. Origin IT Solution