गोड्डाके साधिका कुमारी महरानी झाकी अनुभूतियां
१. दिनांक ३०.४.२०१० के दिन मैं अपने ननिहाल अर्थात तनुजदीदीके गांवमें थी | अचानक मेरे कानमें वेदना होने लगा और अगले दिन सिरमें वेदनाके साथ-साथ ज्वर भी आ गयाऔर अत्यधिक घबराहट होने लगी और वेदना भी असह्य हो गया, तब मैंने एक साधकको तनुजा दीदीको बुलाने भेजा | तनुजा दीदी आयीं और मेरे कानपर हाथ रखी तो मेरा वेदना कम हो गयी और घबराहट भी समाप्त हो गई | तनुजा दीदी बोलीं कि यदि पुनः वेदना होगी तो ये सोचना कि तनुजा दीदीका हाथ मेरे कानपर है | दीदीके जानेके पश्चात संध्या समय पुनः वेदना होनेपर मैंने ऐसे ही किया तो मेरे ऊपर आध्यात्मिक उपाय(स्पिरिचुयल हीलिङ्ग) होने लगा, उसके पश्चात लगा कि मैं चौकीसे गिरने लगी तो तनुजा दीदीका हाथ पकडा; परंतु जब मेरा आंखें खुली तो तनुजा दीदी नहीं थी ।
अनुभूतिका विश्लेषण : इस साधिकाको अनिष्ट शक्तिका कष्ट है और यह वेदना भी उसे अनिष्ट शक्तिके कारण होता है | अतः आध्यात्मिक उपाय करनेपर उसके कष्ट कम हो गए |
२. दिनांक १.५.२०१० के दिन विष्णुधाममें (जहां दीदी रहती हैं), तनुजा दीदीने अंश मात्र भोजन छोड दिया था | एक साधिका उसे फेंकने जा रही थी, मैंने वो जूठन प्रसाद समझकर ग्रहण कर लिया जिससे मेरे कानमें हो रही वेदना ठीक हो गयी ।
अनुभूतिका विश्लेषण : गुरुतत्त्व भाव अनुरूप कार्य करता है |
३. दिनांक २८.५.२०१० के दिन तनुजदीदी हमारे गांव प्रवचन देनेके लिए आई थीं | मैंने दीदीके लिए पुरी और सब्जी बनाई थी | प्रवचनके पश्चात संध्या होनेके कारण तनुजा दीदी मेरे घरसे बिना भोजन ग्रहण किए ही चली गईं क्योंकि मेरे गांवसे उनके गांवका मार्ग थोड़ा असुरक्षित है | इसके पश्चात पिताजीने मुझे भोजन ग्रहण करनेके लिए कहा, तो मैंने थोड़ा दुखी हो, भोजन नहीं ग्रहण किया; परंतु रात्रिमें मेरे मुंहसे पूरीका टुकडा निकला ।
अनुभूतिका विश्लेषण : साधिकाके मुंहसे पूरीका टुकड़ा निकलना, यह ईश्वरीय नियोजित लीला थी जिससे कि उसे समझमें आए कि उसकेद्वारा की गई भावपूर्ण सेवा, ईश्वर चरणों तक पहुंच गयी चाहे उसे मैंने ग्रहण किया हो या नहीं | ईश्वर प्रत्यक्ष भोजन ग्रहण नहीं करते उस भोजनमें अर्पित भावको ग्रहण करते हैं, यह अनुभूति हमें यह सीख देती है |
४. दिनांक २६.१२.२०१० के दिन ‘उपासना हिंदु धर्मोत्थान संस्थान’ का स्थापना दिवस समारोह था अर्थात उस दिन दीदीद्वारा इस संस्थाकी स्थापना की गयी | जब मैंने अग्रसेन भवनमें(कार्यक्रम स्थलपर) तनुजा दीदीको श्वेत साडीमें देखा प्रथम बार देखा तो मुझे लगा कि वहां दीदी नहीं अपितु सरस्वती मां कमल फूलपर विराजमान हैं । इस प्रकारकी अनुभूति उस दिन दो और साधकको हुई और यह हमें दो दिन पश्चात ज्ञात हुआ |
अनुभूतिका विश्लेषण : ‘उपासना’ का मूल उद्देश्य धर्मशिक्षण देना है और ईश्वरीय तत्त्व कार्य एवं उद्देश्य अनुरूप क्रियाशील होता है | सरस्वती विद्याकी देवी हैं और उपासनाका उद्देश्य भी विद्या देना है अतः साधकोंको उसके अनूरूप अनुभूतियां हुईं |
५. गांवके काली मंदिरमें जब आरती होती है तो तनुजा दीदी उपस्थित रहे या न रहे, हम साधक दीदीके लिए एक आसन और झाल जो दीदी आरतीके समय बजती हैं, वह रखते हैं | दिनांक ३०.७.२०१० के दिन मैं अपने गांवमें थी, दीदीका गांव, मेरा ननिहाल है | जब घरमें मैं आरती कर रही थी तो मैंने दीदीके बैठनेके लिए एक आसन और एक झाल रख दिए और आंखें बंद कर आरती करने लगी तो मुझे ऐसा लगा कि मैं काली मंदिरमें हूं और मेरे साथ तनुजा दीदी आसानपर बैठ झाल बजा रही हैं ।
अनुभूतिका विश्लेषण : स्थूलसे सूक्ष्मकी ओर जाना यह भक्तियोग अंतर्गत दूसरा चरण है | जब साधक उपासनाकांड अंतर्गत भावके साथ कर्मकांड करता है तब उसे इस प्रकारकी अनुभूति होती है | – तनुजा ठाकुर
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