अपनी चूकें कैसे ढूंढें ? (भाग – ३)


दिनचर्याके माध्यमसे अपनी वृत्तिको कैसे परिवर्तित कर सकते हैं  ?
अगले दिवसकी दिनचर्याका नियोजन करते समय या दिनचर्या लिखते समय उसमें व्यष्टि साधनाके लिए समयको प्राथमिकता दें, ऐसी दिनचर्यासे आपका मनुष्य जीवन सार्थक होगा । जैसे दिनचर्यामें नामजप, आरती, आत्मनिरीक्षणके लिए समय निर्धारित करें ! जैसे प्रातः ७.३० से पूजा आरती और आठसे सवा आठ नामजप करना । चाहे १५ पन्द्रह मिनिटसे आरम्भ करें, किन्तु अपनी साधना हेतु दिनचर्यामें समय निकालें ! यदि प्रातःकाल आपको समय नहीं मिलता हो तो संध्या या रात्रिके समय नामजपके लिए समय निर्धारित करें ! उसीप्रकार स्त्रियां दोपहरमें या संध्या समय नामजपके लिए समय निर्धारित कर सकती हैं । साथ ही दिनभरमें किसी भी समय अर्थात २४ घण्टेमें किसी भी समय थोडा समय अध्यात्म एवं धर्मके अभ्यासको दें ! जब आपसे इन कृत्योंको करनेमें सातत्य नहीं रहता तो उसे प्रतिदिन अपनी चूकोंवाली अभ्यास पुस्तिकामें लिखते जाएं, जैसे
१. आज आरती निर्धारित समयसे दस मिनिट देरीसे की
२. आज प्रातःकाल उठकर नामजप नहीं किया
३. संध्या समय ग्रन्थ वाचन या सत्संग नहीं सुना उसके स्थानपर दूरदर्शन संचपर खेलके कार्यक्रम देखता रहा
४. नामजप करते समय मन विचलित होकर घडीपर जा रहा था ।
इसप्रकार यदि आप अपनी दिनचर्याके मध्य होनेवाली चूकोंका अभ्यास करने लगेंगे तो आपको अपने दोषोंके कारण निर्माण होनेवाले चूकोंको नहीं होने देना है या उसे दूर करना है, ऐसा लगने लगेगा जो अन्तर्मुखताका प्रारम्भिक चरण है ।
  यदि आप अपने चिन्तनका समय, नामजप, पूजा, आरती इत्यादिका समय निर्धारित कर, उसी कालमें करने लगेंगे तो आपके व्यक्तित्वमें अन्य कार्योंको भी समयपर या नियोजनबद्ध रीतिसे करनेकी वृत्ति निर्माण होने लगेगी । इसप्रकार दिनचर्या लिखकर उसका अनुसरण करनेसे आपमें समयबद्धता एवं नियोजनबद्ध रीतिसे कार्य करनेका गुण आत्मसात होने लगेगा । (क्रमश:)



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