मद्रास उच्च न्यायालयके न्यायाधीशने कहा, मन्दिरमें बैठे भगवानको भी करना होगा विधानका पालन !!


जनवरी २४, २०१९

 

मन्दिरोंको लेकर गुरुवार, २४ जनवरीको मद्रास उच्च न्यायालयने कहा, “मंदिरमें बैठे भगवान हों या मानव, सभीके लिए विधान समान है और किसीको भी इसका उल्लंघन करनेकी आज्ञा नहीं दी जा सकती है और न ही किसीको इसमें कोई छूट दी जा सकती है ।

‘द हिंदू’के अनुसार, धार्मिक स्थलोंद्वारा अतिक्रमणसे जुडी याचिकापर सुनवाई करते हुए खण्डपीठने कहा, “यदि किसी मंदिरका कोई देवता अतिक्रमणका कार्य करता है, तो उसे भी विधानके अनुसार निपटाया जाना चाहिए । केवल इसलिए कि वह एक देवता हैं, विधान परिवर्तन नहीं जा सकता है । यही सिद्धान्त है और न्यायालयका भी परामर्श है कि एक लोकतान्त्रिक, सामाजिक और धर्मनिरपेक्ष देश होनेके कारण भारतमें सभी समाजको विधानका पालन करना चाहिए और ऐसा करनेके लिए समान रूपसे सभी समाज बाध्य हैं ।

उच्च न्यायालयकी यह टिप्पणी उस याचिकापर सुनवाईके समय आई है, जिसमें मांग की गई थी कि कोयम्बटूर स्थित क्षेत्रीय राजस्व कार्यालयके परिसरमें स्थित भगवान गणेशके मंदिरको हटाया जाए । याचिकामें कहा गया था कि मंदिर शासकीय भूमिपर अतिक्रमणकर बनाया गया है तो उसे हटानेका आदेश पारित किया जाए ।

न्यायालयने गृह विभाग, नगरपालिका प्रशासन, हाईवेके सचिवोंके साथ-साथ सभी हिन्दू संस्थाओंको इस बारेमें अधिसूचना जारी की थी और पक्ष रखनेको कहा था । गुरुवारको सुनवाईके समय नगरपालिका विभागके सचिवने न्यायालयको बताया कि ८ जनवरीको सभी स्थानीय निकायोंको पत्र लिखकर ऐसे मंदिरों, मस्जिदों और चर्चोंका विवरण मांगा गया है, जो शासकीय भूमिपर बनाए गए हैं ।

 

“समूचे ब्राह्मण्डमें एक बिन्दू पृथ्वी, उस पृथ्वीपर एक बिन्दू यह न्यायाधीश सभीके रचनाकारको न्याय पढा रहे हैं, यह मूढता तो मैकॉले शिक्षित ही कर सकता है और मन्दिरके प्रकरणमें ऐसे निर्णय देनेवाले न्यायालय मस्जिदों और गिरिजाघरोंके प्रकरणमें ऐसे निर्णय नहीं दे पाते हैं, यह एक हिन्दू बहुल राष्ट्रमें हिन्दुओंकी विडम्बना है । न्यायाधीश महोदयको बताना चाहते हैं कि पदके अहंकारमें  उस ईश्वरका विस्मरण नहीं करना चाहिए जो श्वासमें, हृदयाकाशमें बसा है । भूमिका अतिक्रमण देवताओंने नहीं मानवोंने किया है । मन्दिर शताब्दियोंसे बने हैं, आपके न्यायालय और घर अभी बने हैं तो अतिक्रमण किसने किया है ? यह सरलसा तथ्य जिसे समझ नहीं आता, वह न्याय कैसे देगा ? देवालयोंकी ऐसी विडम्बनाको रोकने हेतु अब केवल हिन्दू राष्ट्रकी आवश्यकता है, जिसमें न्यायादाता धर्मप्रेमी होंगें !” – सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ

 

स्रोत : आजतक



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