“बाढे पूत पिताके धरमे और खेती उपजे अपने करमे”


एक देहाती कहावत है, “बाढे पूत पिताके धरमे और खेती उपजे अपने करमे” अर्थात माता-पिताद्वारा किया हुआ धर्माचरणका प्रभाव संततिपर अवश्य ही पडता है और खेतीके लिए पुरुषार्थ आवश्यक है ।
आजकल माता-पिता स्वयं साधना नहीं करते और न ही धर्माचरण करते हैं, उसके विपरीत पैशाचिक प्रवृत्तिवाले पाश्चात्य संस्कृतिका अंधानुकरण करते हैं और तत्पश्चात अपने संतानके दिशाहीन होनेपर दुखी होते हैं । वस्तुतः बच्चे अनुकरणप्रिय होते हैं और अपने घरके सदस्योंके संस्कारको सहज ही आत्मसात कर लेते हैं । साधना इतनी सूक्ष्म होती है कि वह हमारे कुलके संस्कारमें अंतर्भूत हो जाती है । वैदिक संस्कृतिके अतिरिक्त  इस संसारकी कोई भी संस्कृति सत्त्व गुण आधारित नहीं है; अतः आपके बच्चोंके अंदर वैदिक संस्कृतिके संस्कारका बीजारोपण करना प्रत्येक माता-पिताका मूल धर्म है ।



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