सत्संगका अर्थ है सतका संग ! सत्संग दो प्रकारके होते हैं, एक होता है बाह्य सत्संग और दूसरा होता है आतंरिक सत्संग | जब हमारा योग या जुडाव ईश्वरके साथ अखंड हो जाता है और उसका क्रम कभी भी नहीं टूटता है, उसे खरे अर्थोंमें सत्संग कहते हैं और इस प्रकारके सत्संगको आतंरिक सत्संग कहते हैं |-तनुजा ठाकुर
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