भवान्यष्टकम्


न तातो न माता न बन्धुर्न दाता न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता ।

न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ।

अर्थ : हे भवानी ! न पिता, न माता, न बंधु, न दाता, न पुत्र, न पुत्री, न सेवक, न स्वामी, न पत्नी, न विद्या, न मन शाश्वत रूपसे मेरा है, अतः तुम ही मेरी गति हो, तुम्हीं गति हो, तुम्हीं मेरी एकमात्र गति हो !

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भवाब्धावपारे महादुःखभीरु पपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्तः ।
कुसंसारपाशप्रबद्धः सदाहं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ।।

अर्थ : हे भवानी ! जन्म और मृत्यु रूपी समुद्रमें डूबा हुआ हूं और इस महादु:खोंसे भयभीत हूं, कामनाओंमें, लोभमें डूबा हुआ हूं, अहंमें लिप्त हूं, संसार रूपी पाशमें बंधा हुआ हूं, ऐसी स्थितिमें तुम ही सदा मेरी गति हो, तुम्हीं गति हो, तुम्हीं मेरी एकमात्र गति हो !

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न जानामि दानं न च ध्यानयोगं न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्रमन्त्रम् ।
न जानामि पूजां न च न्यासयोगं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ।।

अर्थ : हे भवानी ! न दान, न ध्यान, न तंत्र,  न स्तोत्र, न मंत्र, न पूजा –अर्चना या न्यास या योग  जानता हूं, तुम ही मेरी गति हो, तुम्हीं गति हो, तुम्हीं मेरी एकमात्र गति हो !

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न जानामि पुण्यं न जानामि तीर्थं न जानामि मुक्तिं लयं वा कदाचित् ।
न जानामि भक्तिं व्रतं वापि मात गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ।।

अर्थ : हे भवानी ! न पुण्य जानती हूं, न तीर्थ, न मुक्ति, न अहंका लय, न भक्ति, न व्रत, तुम ही मेरी गति हो, तुम्ही गति हो, तुम्ही मेरी एकमात्र गति हो !

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कुकर्मी कुसङ्गी कुबुद्धि: कुदासः कुलाचारहीन: कदाचारलीन: ।
कुदृष्टि: कुवाक्यप्रबन्धः सदाहं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ।।

अर्थ : हे भवानी ! मैं कुकर्मी हूं, कुसंगी हूं, कुबुद्धिसे ग्रस्त हूं, कुलाचारहीन, आचारहीन हूं, कुदृष्टिसे युक्त हूं मेरी वाणी अन्योंको क्लेश देती है, हे मां, तुम ही मेरी गति हो, तुम्ही गति हो, तुम्हीं मेरी एकमात्र गति हो !

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प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं दिनेशं निशीथेश्र्वरं वा कदाचित् ।
न जानामि चान्यत् सदाहं शरण्ये गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ।।

अर्थ : हे मां, मैं ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इंद्रा सूर्य और चन्द्रमाको नहीं जानता हूं, मैं तुम्हारे शरणागत हूं, तुम ही मेरी गति हो, तुम्हीं गति हो, तुम्हीं मेरी एकमात्र गति हो !

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विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे जले चानले पर्वते शत्रुमध्ये ।
अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ।।

अर्थ : हे मां, विवादमें, विषादमें, प्रमादमें, प्रवासमें, जलमें, अग्निमें, पर्वतमें, शत्रुके मध्यमें, अरण्यमें मैं तुम्हारे शरणागत हूं, तुम ही मेरी गति हो, तुम्हीं गति हो, तुम्हीं मेरी एकमात्र गति हो !

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अनाथो दरिद्रो जरारोगयुक्तो महक्षीणदीन: सदा जाड्यवक्त्रः ।

विपत्तौ प्रविष्टः प्रनष्ट: सदाहं गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ।।

अर्थ : हे मां मुझ अनाथ, दरिद्र, वृद्धावस्थायुक्त, महाक्षीण (शक्तिहीन), दीन, अज्ञानी, विपत्तिग्रस्तकी तुम्ही गति हो,  तुम्हीं गति हो, तुम्हीं मेरी एकमात्र गति हो !

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3 responses to “भवान्यष्टकम्”

  1. lokendra sharma says:

    Yah shrashthi ka mahan saty he

  2. Deepak says:

    गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि ।।
    🙏

  3. Himanshu Trivedi says:

    Truly devotional Jay Maa 🙏💐😇

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