शंका समाधान

शंका समाधान


प्रश्न : आजकल चम्मचसे भोजन ग्रहण करना, सभ्यताका प्रतीक माना जाता है और हाथसे  भोजन ग्रहण करनेवालेको हीन दृष्टिसे देखा जाता है, क्या आप बता सकती हैं कि हमारी भारतीय संस्कृतिमें हाथसे भोजन ग्रहण करनेका प्रचलन क्यों है, क्या इसका कोई अध्यात्मशास्त्रीय कारण है ? – श्रीमती नीलिमा कौर, फ्रैंकफर्ट, जर्मनी उत्तर : हमारी भारतीय […]

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शंका समाधान


एक साधकने पूछा है कि वर्तमान कालके ढोंगी गुरुओंका भविष्य क्या है ? वर्तमान कालमें अनेक व्यक्ति, गुरु स्थानके योग्य नहीं होनेपर गुरुपदपर आसीन होकर अपने भक्तोंकी संख्या नित्य बढा रहे हैं । ऐसे गुरु अपने साधकोंमें साधकत्व निर्माण करनेको महत्त्व नहीं देते हैं; क्योंकि जब उनमें ही यह गुण नहीं है तो वे अपने […]

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शंका समाधान


जब भी मैं नामजप करने बैठता हूं या स्वभावदोष सारिणी लिखने बैठता हूं तो मुझे लगता है यह एक प्रकारसे समय व्यर्थ करना है एवं मुझे लगता है कि इसके स्थानपर यदि मैं प्रसार कार्य करूं अर्थात् समष्टि साधना करूं तो अधिक लाभ होगा । मुझे व्यष्टि साधना करनेकी इच्छा नहीं होती है, जिसे आपने […]

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शंका समाधान


आये दिन हमारे पास कोई न कोई दूरभाष या पत्र या सन्देश आते रहते हैं, जिनका आशय होता है कि आप सनातन धर्मका प्रसार करती हैं; अतः आप आंग्ल भाषामें (अंग्रेजीमें) कुछ भी न लिखें और न ही बोलें, यह आपको शोभा नहीं देता है । मुझे आंग्ल भाषामें (अंग्रेजीमें) बोलना अच्छा नहीं लगता है […]

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क्या अनिष्ट शक्ति साधनामें विघ्न डाल सकती हैं ?


क्या अनिष्ट शक्तियोंका प्रभाव इतना अधिक हो सकता है कि वे हमें अपने भगवानकी पूजा / आराधना ही न करने दें ? मुझे भी विगत २ वर्षोंसे ऐसा अनुभव हो रहा है कि मुझपर भी किसी अनिष्ट शक्तिका प्रभाव पड रहा है;  मुझे कभी कभी ऐसा लगता है कि जैसे कोई शक्ति मुझे कालीकी पूजा […]

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शंका समाधान


प्रश्न : मैं आपके लेखोंको फेसबुकपर नित्य पढता हूं और मुझे उसे पढते समय आनन्दकी अनुभूति होती है | आपके बताए अनुसार मैं नामजप कर रहा हूं और मुझे भान हो रहा है कि धीरे-धीरे मेरा नामजप बिना प्रयत्नके सहज ही अविरत होने लगा है जबकि मैं कभी-कभी कुछ और सोच रहा होता हूं तब […]

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शंका समाधान


प्रश्न :  ‘जबसे आपने ‘ॐ हं हनुमते नमः’का जप करने कहा है, तबसे मैं इसे करनेका प्रयास कर रहा हूं; परन्तु जब मैं यह जप करता हूं, तब मुझे अत्यधिक उष्णताका अनुभव होता है, जिससे मुझे घबराहट होने लगती है, मुझे थकावट भी होने लगती है; परन्तु कुछ माला करनेके पश्चात् मेरे कष्ट न्यून हो […]

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बाहर खानेवाले भोजनके आचार सम्बन्धी नियमोंका पालन कैसे करें ?

आपके प्रत्येक दिवसके सत्संग सुननेके पश्चात मैं आपके पहलेके सत्संग भी सुन रहा हूं । इन सत्संगोंमेंसे एक सत्संगके सन्दर्भमे मुझे एक शंका है ।
यदि कोई व्यक्ति घरमें भोजन नहीं बना सकता हो या भोजन बनानेवाला कोई उसके घरमें न होनेके कारण बाहरसे खाना लाकर खाता हो तो ऐसे बाहरसे लाए भोजनके सन्दर्भमें हमें क्या करना चाहिए; क्योंकि वह खाना किसने बनाया है, कैसे बनाया है ?, इसका पता नहीं चलेगा । उदाहरण हेतु अनेक विद्यार्थी शिक्षण हेतु अपने घरसे दूर अकेले रहते हैं । वे अपना खाना डिब्बेमे मंगवाकर खाते हैं । और मेरे जैसे भी कुछ लोग होंगे जिनके घरमें मां है; परन्तु बढती आयुके कारण वो खाना नहीं बना सकती । तो ऐसे लोग बाहरसे लाए भोजनके सम्बन्धमें क्या करें ? हम जो अन्न ग्रहण करते है, उसका हमारी बुद्धि, विचार और परिणामस्वरूप आचारपर बहुत प्रभाव पडता है, यह मैंने पढा था । तबसे यह शंका मेरे मनमें कई वर्षोंसे थी । - वैभव देशपाण्डे


अन्नका हमारे मनपर निश्चित ही प्रभाव पडता है । कहावत भी है ‘जैसा खाए अन्न वैसा रहे मन !’ यदि हम बाहरका अन्न खाते हैं तो निम्नलिखित बातोंका पालन कर सकते हैं……..

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शंका समाधान : क्या नामजप करनेसे पूर्व स्नान करना चाहिए ?


समाधान : प्रारम्भिक अवस्थाके साधक यदि स्नान करके नामजप करें तो अति उत्तम होगा; क्योंकि स्नान करनेसे अल्प प्रमाणमें सात्त्विकतामें वृद्धि होती है, जिससे ऐसे साधकोंको नामजप करनेमें थोडी सहायता मिलती है एवं ऐसे साधकोंने स्नान करनेके पश्चात कमसे कम तीन माला नामजप अवश्य करनेका प्रयास करना चाहिए । शास्त्र अनुसार, नामजप उपासनाकाण्डकी (मानसिक स्तरकी) […]

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अंगदानसे सम्बन्धित शंका समाधान


  प्रश्न : मैं पिछले बीस वर्षोंसे इटलीमें रह रही हूं, मैंने यहां अंगदानको अत्यधिक प्रचलित देखा, इसलिए यहांके लोगोंके मानवतावादी दृष्टिकोणसे प्रभावित होकर मृत्यु उपरान्त अपने अंगोंको दान करने हेतु एक चिकित्सालयमें अपना नाम पंजीकृत कराया है; किन्तु आपके ‘यूट्यूब’पर अनिष्ट शक्तियोंसे सम्बन्धित प्रवचनोंको सुननेके पश्चात् मैं द्वन्द्वमें फंस गई हूं; क्योंकि मुझे लगा कि […]

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