अध्यात्म एवं साधना

सन्यास लेने की न कोई आयु होती है न कोई अवस्था


सन्यास लेने की न कोई आयु होती है न कोई अवस्था , जिस भी समय मन में तीव्र वैराग्य उमडने लगे सन्यास ले लेना चाहिए , सन्यासी विरक्त मनको यदि योग्य सद्गुरु का शरण मिले तो वह सोने पे सुहागा हो जाता है !! खरे अर्थोंमें एक सतशिष्य यदि गुरुसेवा एवं ईश्वर प्राप्ति हेतु अपनी […]

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साधनाकी पहचान वस्त्रसे नहीं होती !!!


कुम्भ क्षेत्र में एक प्रसिद्ध सन्यासीसे(आध्यात्मिक स्तर – ४५% ) मेरा परिचय हुआ जब मैं तीसरी बार उनसे मिलने इस बार के कुम्भ में गयी तो मैंने एक गेरुआ रंग की साडी पहनी थी , इससे पहले संभवतः मैं कोई और रंग की साडी पहन कर गई थी । जैस ही उन्होंंने मुझे देखा : […]

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ईश्वर कभी गलत नहीं होते


व्यक्ति गलती कर सकता है, पक्षों के सिद्धांत गलत हो सकते हैं, मात्र ईश्वर कभी गलत नहीं होते अतः हम न व्यक्ति निष्ठ हैं, न पक्ष निष्ठ है ! हम तो ईश्वर निष्ठ और राष्ट्र निष्ठ हैं -तनुजा ठाकुर

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संत निडर क्यों होते हैं ?


संतोंका अहं नष्ट हो गया होता है, वे मान अभिमान से परे जा चुके होते हैं , उन्हें विषय वस्तुओंका आकर्षण नहीं होता अतः किसी वस्तुके खोनेका भी डर नहीं होता | संत ईश्वरसे एकरूप हो चुके होते हैं , ईश्वरकी अनंत शक्ति उनमें समाहित होती है अतः वे निडर होते हैं – तनुजा ठाकुर

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वर्णानुसार साधना


जब कोई साधक बुद्धि अर्पणकर, धर्मप्रसारकी सेवा करता है तो उसे ब्राह्मण वर्णकी सेवा कहते हैं, चाहे उस साधकका जन्म किसी भी जातिमें हुआ हो,  जब कोई धर्म रक्षणार्थ प्राण अर्पण करनेकी तैयारी रखता है, या क्षात्रवृत्तिसे अधर्म या धर्म-ग्लानि रोकता है, उसे क्षत्रिय वर्णकी साधना कहते हैं; और जब कोई सन्त-कार्य या धर्म-कार्य हेतु […]

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खरे संत कभी चमत्कार नहीं करते


खरे संत कभी चमत्कार नहीं करते ! उनके आस्तित्त्व मात्र से चमत्कार होने लगते हैं  – तनुजा ठाकुर

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छोटी उम्रसे ही साधना करना क्यों आवश्यक है ?


अधिकतर युवा साधकोंको साधना करते देख कुछ अल्पज्ञानी उन्हें दिशाभ्रमित करते है कि अभी आपकी उम्र ही क्या हुई है, अभीसे यह सब करने की क्या अवश्यकता है ? साधना तो बुढ़ापेमें सर्व उत्तरदायित्वसे मुक्त होकर करना चाहिए,  परंतु यह अपने आपमें यह एक त्रुटिपूर्ण दृष्टिकोण है। छोटी उम्रसे ही साधना करना क्यों आवश्यक है […]

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राजधर्म सीखना और सिखाना परम आवश्यक !


अध्यात्मकी शिक्षा देनेवालोंने धर्मकी शिक्षा अवश्य ही देनी चाहिए और धर्मकी शिक्षा देनेवालोंने राजधर्मकी, अन्यथा समाजमें ‘त्राहिमाम’की स्थिति यथावत रहेगी और इसके लिए सभी अध्यात्मविद और धर्मज्ञ उत्तरदायी होंगे !

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अखंड कृतज्ञताका भाव होना द्वैत अवस्थाका अंतिम चरण होता है !


संतोंकी बात निराली होती है। संत तुकाराम महाराजकी पत्नी कर्कशा स्वभावकी थीं और संत एकनाथ महाराजकी पत्नी सदवर्तनी और शांत स्वभावकी थीं। दोनों ही संत ईश्वरको ऐसे जीवन साथी देनेके लिए कृतज्ञता व्यक्त करते थे।  संत तुकाराम महाराज ईश्वरको कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहते थे कि उन्होने मायाका सही स्वरूप (झगडालू स्त्री देकर)  दिखाकर उनमें […]

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पाप करनेसे पहले उसके फलके विषयमें एक बार विचार अवश्य करें !


कुछ अधर्म करनेवालोंको लगता है कि एक ओर अधर्म करेंगे और और दूसरी ओर पूजा पाठ , नामजप , दान पुण्य करेगे तो पाप कट जाएगा ! ऐसे लोगोंने यह बात स्पष्ट रूपसे ध्यान रखनी चाहिए कि….

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