जितनी तडप जल के अंदर सांस लेने की होती है जब उतनी ही तड़प ईश्वरप्राप्ति की होती है तभी उच्च कोटी के संत का हमारे जीवन में सद्गुरु के रूप में प्रवेश होता है। जिज्ञासा, मुमुक्ष्त्व, आज्ञापालन, नम्रता, त्याग की प्रवृत्ति, परोपकारिता, सर्व जीव मात्र की उत्थान के भावना, साधना में सातत्य ये दिव्य गुण […]
सद्गुरुकी प्रथम दृष्टिसे ही शिष्य मुक्त हो जाता है। सद्गुरु कहते हैं “तुम्हें इसका बोध नहीं हो रहा है क्योंकि तुम्हारी आत्माके ऊपर मन, बुद्धि और अहमका आवरण है। साधना कर इन तीनों आवरणको नष्ट करो तुझे आत्मसाक्षात्कार हो जाएगा”-तनुजा ठाकुर
जब स्वामी रामकृष्ण परमहंसके गुरु तोतापुरी महाराजने कहा ” मैं तुम्हारा गुरु हूंं “। स्वामी रामकृष्णने कहा “मुझे गुरु नहीं चाहिए , मेरे पास काली मांं है मैं उनसे जब चाहे बात कर सकता हूंं”। सद्गुरुने कहा ” तुम्हें अभी तक लगता है कि तुम और काली भिन्न हो , मैं तुम्हें यह बताने आया […]
कुछ भक्त कहते हैं की मेरे गुरु फलां फलां है और उसके पश्चात मुझसे अपने प्रश्नों के और समस्याओं के समाधान के बारे में पूछने लगते हैं जब मैं कहती हूँ कि आप अपने गुरु से पूछें तो कहते है कि मेरे गुरु से मेरा संपर्क नहीं है, तो मैंने कहा कि उनके शिष्य से […]
हमारी भारतीय संस्कृतिमें गुरु-शिष्य परंपरा हमारे सांसारिक जीवनमें अन्तर्भूत थी | प्रथम पुत्रके लिए पिता, अनुजके लिए अग्रज बंधु, पत्नीके लिए पति, यह गुरु समान होते थे | और कर्मनिष्ट त्याग-पारायण ब्राह्मण सम्पूर्ण समाजका गुरु होता था | कालांतरमें धर्मका ह्रास हुए और संबंधोंसे यह आध्यात्मिक आधारका ह्रास होने लगा और अब वह लगभग समाप्तसा […]
ख्रिस्ताब्द २०१२ में पटनामें एक वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारीने फेसबुकके माध्यमसे मुझसे अपनी शंकाओंके समाधान हेतु सम्पर्क किया और इस प्रकार वे ‘उपासना’से जुड गए | जब मैं झारखण्डमें अपने गांव लौटती थी तो पटनामें उनके घर रुकना होता था, मैं सम्भवतः पांच-छः बार उनके घरमें रुकी होउंगी । दोनों पति-पत्नीको अपने अधिकारी होनेका अत्यधिक अहं […]
जैसे पतिव्रता स्त्री को सत्पुरुष एवं धर्माचरणी पति द्वारा अर्जित ऐहिक और परलौकिक थाती स्वतः ही प्राप्त हो जाती है उसी प्रकार सद्गुरु की पूर्ण अध्यात्मिक शक्ति योग्य पात्रवाले सतशिष्य को स्वतः ही प्राप्त हो जाता है और तब गुरु शिष्य में कोई भेद नहीं रह जाता और शिष्य गुरुमय हो जाता है ! -तनुजा ठाकुर
यदि गुरु हमें डांटें, गाली दें, या मारें तो क्या करना चाहिए ? प्रश्न – गुरुके साथ चलनेके समयपर यदि शिष्य गुरुसे आगे चलता है, तो गुरु चिल्लाते हैं, “तुम्हारी इतनी हिम्मत, मुझसे आगे चल रहे हो ?” यदि शिष्य पीछे छूट जाए, तो गुरु पुनः चिल्लाते हैं, “जब तुम मेरे शिष्य हो, तो पीछे […]
ख्रिस्ताब्द २००४ तक हमारे एक गुरुबंधु हमारे श्रीगुरुके मार्गदर्शनमें साधना कर रहे थे । हम सभी साधकों समान जब उन्हें भी अपने दोष एवं अहंके लक्षणोंके निर्मूलन हेतु कहा जाने लगा तब उन्होंने साधना छोड दी और किसी अन्य गुरुके शरणमें जाकर साधना आरम्भ कर दी । कुछ समय उपरांत उन्होंने किसी तीसरे गुरुसे सन्यास […]
अधिकांश समय गुरु एवं ईश्वरने धर्म प्रसारकी सेवा एकाकी करनेकी आज्ञा दी है ; किन्तु मेरा एकाकी होना, मेरे लिए कभी भी अडचन नहीं बनी, सेवाके मध्य मुझे जो भी विनम्र साधक जीव मिले, उन्हें अपने साथ लेकर गुरुकार्य करती रही हूं एवं जिस भी जनपदमें भी रही, वहां अधिकतर बच्चों और युवाओंने अत्यधिक उत्साहसे […]