गाजियाबाद, उत्तर प्रदेशके श्री. महेन्द्र शर्माकी अनुभूतियां


१. मांके आगमन एवं सत्संगके पश्चात् घरमें चीटोंका निकलना हुआ बन्द
१८ अप्रैल २०१३ को प्रातःकाल मैं नित्यकर्मके लिए अपने घरमें स्थिति शौचालय गया तो मुझे शौचालयमें दो-चार चींटे दिखाए दिए; मैं यह सोचकर भीतर चला गया कि दो-चार ही तो है; परन्तु आश्चर्यकी बात यह है कि दो-तीन मिनटके भीतर ही वहां सैकडों चींटे आ गए और उन्होंने वहां मेरा नित्यकर्म करना कठिन कर दिया और मुझे तुरन्त बाहर आना पडा; परन्तु जब थोडी देरके पश्चात् दुबारा जब मैंने शौचालयको देखा तो एक भी चींटा दिखाई नहीं दिया, मेरेसे पहले मेरी पत्नी शौचालय गईं थीं, मैंने उनसे भी पूछा कि आप जब शौचालय गए थे तो क्या शौचालयमें चींटे थे ? तो उन्होंने कहा कि उन्होंने वहां एक भी चींटा नहीं देखा ।
उसीप्रकार २६ अप्रैल २०१३ को प्रातःकाल लगभग ४ बजे नित्यकर्मके लिए गया तो पुनः एक बडेसे चींटेने पैरकी दो उंगलियोंके मध्य ‘जोर’से काट लिया और मैंने झटसे हाथसे उसे पृथक किया; परन्तु कुछ ही क्षणोंमें वो चींटा लुप्त हो गया । मुझे लगता है कि चींटोंके रूपमें अनिष्ट शक्तियां ही मुझे कष्ट दे रही हैं । कुछ महीने पहले भी हमारे पूरे घरमें चींटोंका दिन और रातके समय साम्राज्य रहता था जो कि अब तनुजा मांके हमारे घर आने और सत्संग करनेके पश्चात पूर्णत: समाप्त हो गया है । (२०.८.२०१४)
अनुभूतिका विश्लेषण : अनिष्ट शक्तियां मच्छर, मक्खी, चींटे, कीडे, चूहे, कुत्ते किसी जानवरके भी माध्यमसे हमें कष्ट दे सकती हैं, ये सब मायावी मान्त्रिकोंका प्रकोप होता है, आपको तो ज्ञात है मारीचने स्वर्ण मृग बन सीता माताको छला था

२. दिसम्बर २०१५ के उपासनाके स्थापना वर्षगांठ कार्यक्रमके दिवस मेरी सेवा यह थी कि कोई बच्चा प्रांगणमें नहीं आए; क्योंकि स्थानीय ग्रामीण बच्चे बातेंकर स्थलपर अशान्ति फैलाकर कार्यक्रममें बाधा पहुंचा रहे थे और साथ ही वृद्धजनको जो कम्बल लेने आए थे, उन्हें पंक्तिबद्ध बैठाना था । इस हेतु मुझे पूर्ण समय मुख्य द्वारपर खडे होकर ही यह सेवा करनी थी; अतः रात्रि होते-होते मुझे अत्यधिक थकान हो गई । अधिक देर खडे होनेपर मुझे पांवके तलवोंमें जलन होने लगती है और उसके पश्चात अत्यधिक थकान अनुभव होती है; परन्तु रात्रिको कार्यक्रमके समापनके पश्चात जब सभी साधक पूज्या तनुजा मांके कक्षमें बैठक हेतु कुछ समय बैठे, तो थोडी देर पश्चात ही मेरी सारी थकान समाप्त हो गई । उसके पश्चात मैं, सभी साधकोंके साथ पूरी रात जागकर बिना किसी थकानके सत्संगकर आनन्द लेता रहा, जबकि ऐसी स्थितिमें सामान्यतः इतना अधिक थकान होनेपर खडे या बैठे रहनेका साहसतक नहीं होता है । – श्री महेन्द्र शर्मा, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश

 

 

 



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