अनेक पण्डित पूजा पूर्व सिद्धता करनेके क्रममें पुष्पकी पंखुरियां तोडना आरम्भ कर देते हैं, चाहे उनके पास जितना भी पुष्प हो, वह पुष्पकी पखुरियोंको तोडकर ही उसे देवताको अर्पित कराते हैं ! ऐसे सभी पण्डितोंको बताना चाहेंगे कि देवताको पुष्प तोडकर न चढाएं, देवताका तत्त्व, पुष्पके रंग, गन्ध और आकृतिसे आकृष्ट होता है, पुष्पको तोडकर उसे विद्रूप करनेसे उस पुष्पमें देवताको आकृष्ट करनेकी क्षमता न्यून हो जाती है; इसलिए यजमानको जितना आवश्यक हो उतना पुष्प लानेको कहें और पुष्पको योग्य पद्धतिसे देवताको अर्पित करें |
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