जर्मनीमें अफगानिस्तानसे शरणार्थी बनकर आये हिन्दुओंके सन्दर्भमें मेरे अनुभव


अ. कुछ वयोवृद्ध मुसलमानी टोपी पहनकर मंदिरमें आते हैं, जब मैंने उन्हें बताया कि इससे उनके मन एवं बुद्धिपर काला आवरण निर्माण होता है तो वे उसे सुन लिए और कहा भी कि वे उसे उतार देंगे; परन्तु एक दूसरे व्यक्तिने कहा कि दो तीन संतोंने उन्हें ऐसा करनेसे रोका है परन्तु वे उसे पहनना नहीं छोड़ते हैं।
आ. मंदिरोंके शौचालयमें शौचके पश्चात् कागदका ही उपयोग किया जाता है वहां जलकी व्यवस्था नहीं है, यह स्थिति ऑस्ट्रियामें भी मैंने पायी।
इ. धर्मशिक्षण और धर्माभिमानके अभावमें जिन मुसलमानोंके आतंकसे वे वहां से भागकर जर्मनीमें शरणार्थी बने, आज उन्हीं अफगानी हिन्दुओंकी अगली पीढी मुसलमानोंकी साथ भागकर विवाह कर रहे हैं, जो उन सबके लिए चिंताका विषय बन गया है।
ई. कोलनमें मंदिर और गुरुद्वारा दोनों एक ही स्थानपर है और वहां हिन्दुओंको गुरूद्वारेके सारे नियम मानने होते हैं; परन्तु गुरुद्वारेको माननेवाले रजस्वला एवं सूतक-पातक को नहीं मानते हैं।
उ. वहींके कुछ लोगोंके अनुसार अफगानी हिन्दुओंके लिए उनका मंदिर उनके लिए मंदिर नहीं अपितु एक सामुदायिक केंद्र है जहां मंदिरोंके सात्त्विकता बनाये रखनेका निमित्त मात्र भी प्रयास करनेपर, प्रयास करनेवालेका तीव्र विरोध होने लगता है।
ऊ.अफगानी हिन्दुओंको धर्मशिक्षण की अत्यधिक आवश्यकता है; परन्तु इस बातका उन्हें तीव्रतासे भान नहीं होता है।
ए. फ्रैंकफर्टके मंदिरमें कुछ अफगानी युवाओंने हिन्दू धर्मके ज्ञानको जानने हेतु विशेष उत्सुकता दिखाई और अनेक प्रश्न भी पूछें  -तनुजा ठाकुर

 



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