वर्ण व्यवस्था आधारित प्राचीन भारतीय संस्कृतिकी कुछ विशेषताएं
* पद और प्रतिष्ठा जन्म अनुसार नहीं, गुण और कर्म अनुसार मिलता था ।
* जिनकी जितनी अधिक साधना, त्याग और धर्माचरणको कृतिमें लानेके प्रयास होते थे, उन्हें समाजमें उतना ही उच्च स्थान प्राप्त होता था अर्थात् सम्मानके अधिकारकी पात्रता, साधना और त्यागके आधारपर हुआ करती थी ।
* दण्डका विधान भी उसीप्रकार था, जिसका वर्ण जितना ऊंचा, उसे उसके अपराधोंका उतना ही कठोरतम दण्ड मिलता था ।
* छूत-अछूत और भेदभाव समाजमें नहीं था । सभी वर्णोंके लोगोंमें आपसी सामंजस्य तथा एक-दूसरेके प्रति सम्मानकी भावना निहित थी ।
* सभीको साधना करनेका समान अधिकार प्राप्त था ।
* अपनी आध्यात्मिक क्षमता बढाकर कोई भी अगले वर्णका अधिकारी हो सकता था, जैसे क्षत्रिय राजा साधनाकर ब्राह्मण-वर्ण प्राप्तकर, ब्राह्मण समान पूजे जाते थे ।
* प्रत्येक व्यक्ति अपने वर्ण अनुसार अपना व्यष्टि और समष्टि उत्तरदायित्व निभाता था ।
-तनुजा ठाकुर
Leave a Reply