धर्म प्रसारकी सेवासे साधना कैसे होती है ?


धर्मप्रसारकी सेवा अर्थात वर्णानुसार साधनाका एक उत्तम माध्यम :

धर्मप्रसारकी सेवा में बुद्धि अर्पण कर धर्मशिक्षण देनेवालोंकी ब्राह्मण वर्णकी सेवा हो जाती है, संत-गुरु, देवी-देवता, धर्मग्रंथ, गौ, गंगा, भारतमाता इत्यादिकी विडम्बना रोकने हेतु, धर्म रक्षणार्थ समाजको मानसिक रूपसे धर्मद्रोहियोंके विरुद्ध कृति करनेके लिए प्रेरित करने एवं स्वयं भी इस हेतु प्राण अपर्ण करनेकी तैयारी रखनेको क्षत्रिय वर्णकी साधना कहते हैं । वर्तमान स्मायमें क्षत्रिय वर्णकी साधनाका अधिक महत्व है । उसी प्रकार धर्मकार्य हेतु निष्काम भावसे प्रत्येक मास धर्मके मार्गका अनुसरण कर अपने मासिक आयका दशांश अर्पण करनेसे वैश्य वर्णकी साधना हो जाती है और शरीरके माध्यमसे ग्रंथ प्रदर्शिनी लगाना, घर-घर जाकर सत्संगमें आने हेतु निमंत्रण पत्र बांटना एवं भीतीपत्रक एवं फलक लगाना जैसी सेवा करनेसे शूद्र वर्णकी सेवा होती है । तीव्र गतिसे आध्यात्मिक प्रगति हेतु चारों वर्णसे आध्यात्मिक प्रयास करना परम आवश्यक है अर्थात् ईश्वरने जो दिया है उसे पुनः ईश्वर चरणोंमें अर्पण करनेको वर्णानुसर साधना कहते हैं और धर्मप्रसारकी सेवा वर्णानुसार साधना करनेका एक उत्तम माध्यम है  – तनुजा ठाकुर



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