सन्यास लेने की न कोई आयु होती है न कोई अवस्था


सन्यास लेने की न कोई आयु होती है न कोई अवस्था , जिस भी समय मन में तीव्र वैराग्य उमडने लगे सन्यास ले लेना चाहिए , सन्यासी विरक्त मनको यदि योग्य सद्गुरु का शरण मिले तो वह सोने पे सुहागा हो जाता है !! खरे अर्थोंमें एक सतशिष्य यदि गुरुसेवा एवं ईश्वर प्राप्ति हेतु अपनी घर, पत्नी , बच्चे किसी का परित्याग करता है तो उसे पाप नहीं लगता ! परंतु वैरागीने त्यागके पश्चात यदि माया के विषय का विचार किया तो वह माहापाप होता है अतः सन्यासी बनने से पहले अपने मनका अच्छे से अभ्यास कर लेना चाहिए नहीं तो गेरुआ वस्त्र धारी तथाकथित सन्यासी जो माया में आसक्त हो उसकी स्थिति धोबी के कुत्ते जैसी हो जाती है वह न तो घर का रहता है न घाट का !!-तनुजा ठाकुर



Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

सम्बन्धित लेख


विडियो

© 2021. Vedic Upasna. All rights reserved. Origin IT Solution