आइए जाने किसकी शुभकामनाएं सदैव ही फलीभूत होती हैं और क्यों ?


एक बार एक शिष्यने गुरुसे पूछा, “मेरे एक शुभचिन्तकने जो मुझसे अत्यधिक स्नेह करते हैं, उन्होंने  मुझे प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षामें जाते समय कहा था कि इस बार मैं अवश्य ही उत्तीर्ण हो जाऊंगा, परन्तु पिछले दो वर्षोंके समान इस बार भी बहुत प्रयास करनेपर भी मैं अनुत्तीर्ण हो गया, उनकी शुभकामनाएं फलीभूत क्यों नहीं हुईं ?, क्योंकि मुझे ज्ञात है, इस संसारमें मेरा उनसे बडा हितचिन्तक और कोई नहीं ।”
श्रीगुरुने कहा, “आपका अनुत्तीर्ण होना, यह प्रारब्धवश था । आपके शुभचिन्तकका आध्यात्मिक स्तर ४० % है और इस स्तरके व्यक्तिमें आपके प्रारब्धको परिवर्तित करनेकी क्षमता नहीं होती । आपके प्रारब्धकी तीव्रताको ६०% स्तरके ऊपर यदि कोई व्यक्ति संकल्पकर आपको शुभाशीष देंं, तभी उसके फलीभूत होनेकी कुछ प्रतिशत तक सम्भावनाएं होती हैं, प्रारब्धको परिवर्तित करना इतना सरल नहीं होता है ।”
  यही सच्चाई है, शुभकामनाओंको फलीभूत होनेके लिए शुभकामना देनेवाले व्यक्तिमें संकल्प करनेकी शक्ति होनी चाहिए ! संकल्प करनेकी शक्ति ६०% आध्यात्मिक स्तरवाले व्यक्तिकी ही होती है, इससे निचले स्तरपर यह सम्भव नहीं होता । तो आइए जानें, यह संकल्प शक्ति कार्य कैसे करती है ? साधारण व्यक्ति अपनी ७०% शक्तिका अपव्यय अनावश्यक विचारमें कर देता है; अतः किसी आशीर्वचन या शुभकामनाके फलीभूत होनेके लिए आवश्यक आध्यात्मिक बल ऐसे व्यक्तिमें नहीं होता, ६०% आध्यात्मिक स्तरके व्यक्तिका मन निर्विचार अवस्थाकी ओर बढने लगता है; जिसका मन जितने अधिक समय निर्विचार अवस्थामें होता है, उसकी संकल्प शक्ति उतनी ही अधिक होती है और फलस्वरूप उससे अर्जित आध्यात्मिक बलके कारण उनकी शुभकामनाएं फलीभूत हो जाती हैं ! विश्वकी .००१ % जनसंख्या भी इस आध्यात्मिक स्तरपर वर्तमान समयमें नहीं है !

स्तर क्या होता है यह संक्षेप में देख लेते हैं
६०% स्तर यह क्या है इस विषयको समझनेके लिए स्तरानुसार साधना जानना आवश्यक है । इस विषयको में संक्षेपमें बताती हूंं। यह विषय हमारे श्रीगुरुने (डॉ. जयंत बालाजी आठवले) ‘अध्यात्मका प्रस्तावनात्मक विवेचन’ नामक ग्रन्थमें विस्तारपूर्वक बताया है ।
संक्षेप में इस मुद्दे को कुछ इस प्रकार समझ सकते हैं ।

संपूर्ण श्रृष्टिका निर्माण इश्वरने किया है अतः सजीव निर्जीव सभीमें कुछ न मात्रामें सात्त्विकता है ही निर्जीव पदार्थोंमें १ से २% तो सजीव वनस्पति जगतमें लगभग ५% एवं प्राणी जगतमें १०% लगभग सात्त्विकता होती है और मनुष्य योनीमें जन्म लेनेके लिए कमसे कम २०% सात्त्विकता होनी चाहिये ! और ईश्वरसे पूर्णतः एकरूप हुए संतोंकी सात्त्विकता १००% होती है । २०% अध्यात्मिक स्तरका व्यक्ति नास्तिक समान होता है उसे अध्यात्म, देवी-देवता, धर्म इत्यादिमें कोई रूचि नहीं होता, ३०% स्तर होनेपर व्यक्ति कर्मकांड अंतर्गत पूजा-पाठ करना, तीर्थक्षेत्र जाना, स्त्रोत्र पठन करना, जैसी शरीरके माध्यमसे साधना करने लगता है । ३५% स्तर साध्य होनेपर खरे अर्थमें उसकी अध्यात्मके प्रति थोडी रूचि जागृत होती है और वह साधना करनेका प्रयास आरम्भ करता है । ४०% स्तर होनेपर वह मनसे नामजप करने का प्रयास करता है और ४५ % स्तर आनेपर उसकी अध्यात्ममें रूचि बढने लगती है और अनेक प्रकारकी साधनासे एक प्रकारकी साधनामें उसका प्रवास आरम्भ हो जाता है । ५०% स्तर साध्य होनेपर वह व्यवहारिक जीवनकी अपेक्षा अध्यात्मिक जीवनको अधिक महत्व देने लगता है और सत्संगमें जाना और सेवा करना जैसी अध्यात्मिक कृति निरंतरतासे करने लगता है । ५५% स्तर साध्य करने पर खरे गुरुका उसके जीवनमें प्रवेश हो जाता है और वह तन, मन एवं धन तीनों का ५५% भाग किसी गुरु को, ये गुरुके कार्यके लिए या धर्मकार्यके लिए अर्पण करने लगता है । ६०% अध्यात्मिक स्तरपर खरे अर्थमें सेवा आरम्भ होती है ।इससे नीचेके स्तरपर मन एवं बुद्धिद्वारा विषय समझकर सेवा करनेका प्रयास करते हैं । ७०% स्तरपर साधक संतके गुरु पदपर आसीन होता है और ८०% आनेपर सदगुरु पदपर आसीन होता है और ९०% स्तरपर परात्पर पद यह साध्य हो जाता है -तनुजा ठाकुर



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