अपने पन्द्रह वर्षोंके साधनाके कालखण्डमें आकस्मिक रूपसे कुछ तन्त्र मार्ग अनुसार साधना करनेवाले, साधक प्रवृत्तिके, तान्त्रिकोंसे मेरी भेंट हुई । मेरी जिज्ञासु प्रवृत्तिने मुझे उनकी साधनाके स्थूल और सूक्ष्म पहलूके विषयमें कुछ तथ्य एकत्रित करवाए, जिससे मुझे समझमें आया कि अधिकांश तान्त्रिकोंने शक्तिको भार्या स्वरूपमें मानकर साधना की और वे सब एक स्तरके पश्चात उसकी मायामें अटक गए ! शक्तिको मातृ रूपमें अनासक्त होकर साधना करनेवाले तन्त्र मार्गके अत्यल्प साधकोंने ही आध्यात्मिक प्रगति की, ऐसा मैंने पाया ! कीचडमें रहकर भी अलिप्त रहें, ऐसे कमल रूपी तान्त्रिक सन्तसे मेरी अभी तक भेंट नहीं हुई है !
वैसे तो गोपियोंने, मीराने एवं अन्य कुछ स्त्री सन्तोंने अपने आराध्यकी पति स्वरूपमें आराधनाकर सर्वोच्च आध्यात्मिक मुक्तिको प्राप्त किया है, परन्तु पुरुषोंके लिए स्त्रीको मातृशक्तिके रूपमें साधनाकर आध्यात्मिक प्रगति साध्य करना अधिक लाभकारी होता है । -तनुजा ठाकुर
Leave a Reply