इन्दौर, मध्य प्रदेशके श्री दिनेश दवेकी अनुभूतियां


* मुझे मंचसे सूत्र संचालनकी सेवा मिली थी। मंचपर जब वक्ता कुछ बोल रहे थे तो मैं पोडियमके पीछे बैठा था। उस समय ऐसा लग रहा था जैसे कोई पीछेसे धक्का देकर आगे पीछे कर रहा हो। पहले तो यही सोचा कि सम्भवतः अल्पनिद्राके कारण ऐसा हो रहा होगा; किन्तु कार्यक्रममें उपस्थित एक अन्य साधक श्री नितिन जोशीने बताया कि उन्हें भी यही अनुभूति उसी स्थानपर और काली मंदिरकी सीढियोंपर हुई, यही अनुभूति दूसरे दिन भी हुई और वह भी केवल उस स्थानपर ही हुई। तनुजा मांसे इस विषयमें पूछनेपर ज्ञात हुआ कि उस स्थानपर जो शक्ति एवं चैतन्य विद्यमान था उसके कारण यह अनुभूति हुई।
* सतत् तीन दिवस औसतन तीन घंटोंकी निद्रा और सतत व्यस्तताके पश्चात भी न तो आलस्यका आक्रमण हुआ न ही थकानका आभास हुआ। (यह सन्तोंकी उपस्थितीके कारण वातावरणमें विद्यमान चैतन्यके कारण हुआ। – सम्पादक)
* यात्रामें आने एवं जानेमें कोई समस्या नहीं हुई, जबकि जिस रेलयानमें (पूर्वाएक्सप्रेस) आरक्षण था वह अकस्मात वातावरणमें कुहासा अधिक होनेके कारण निरस्त हो गया; किन्तु उसी दिवस दूसरी रेलयान,‘गरीबरथ’में ८ टिकिट कुछ समय पूर्व ही आरक्षण करवानेपर भी सभीके सभी और वो भी एक ही ‘बोगीमें’ आरक्षित हो गए। तनुजा मांने पहले ही बता दिया था कि प्रार्थना और नामजप करते रहे और चिंता न करें रेलयान निरस्त होनेपर भी दूसरी साधनके माध्यमसे आपसब निर्विघ्न अपने गंतव्यतक पहुंच जाएंगे। इस प्रसंगसे प्रार्थना और नामजपकी शक्तिपर विश्वास और बढा। – दिनेश दवे, इंदौर



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