आज कलाके प्रत्येक क्षेत्रने ले लिया है अपना विभत्सतं स्वरूप
आजकल सामान्य जन मानसको हंसानेके लिए कुछ हंसोड धारावाहिक आरम्भ किए गए हैं परंतु वहांपर हंसानेके लिए निम्नलिखित कुकृत्य होते हैं –
१. भद्दे दो अर्थवाले संवादोंका उपयोग किया जाता है जिसे कोई स्त्री जिसमें संस्कार हो वह आप अपने पिता या भाईके साथ बैठकर नहीं सुन सकती है !
२. जो भी व्यक्ति वहां निर्णायकके रूपमें या अतिथिके रूपमें बैठा होता है, उसपर तीखी व्यंग कर उन्हें उपहासका पात्र बनाया जाता है जिससे कई बार उन्हें मानसिक संताप पहुंचता है; परंतु विरोध करना तो आजका समाज भूल ही गया है; अतः सब सभी अनैतिक बातोंपर मूक-बधिर समान उसका अनुमोदन करते हैं और इसकारण सामजको यह करने हेतु प्रोत्साहन मिलता है |
३. देवी देवता, संत, गुरु, राष्ट्र पुरुष, यहां तक की जन्मदाता माता-पिता तकको ये निर्लज्ज कलाकार या पटकथा लेखक नहीं छोडते हैं, ऐसे सभी पूज्य कहे जानेवाले आस्था स्थानोंपर अशोभनीय टीका कर सभीको हंसानेका ओछा प्रयास कर वे समाजमें सुप्रसिद्ध पाकर समाजके तथाकथित आदर्श बन जाते हैं |
आपको क्या लगता ऐसे लोग कलाके पूजारी होते हैं, नहीं ये तो कलाका अपमान करते हैं और ऐसे लोग समाजमें नैतिकताके पतनके लिए उत्तरदायी होते हैं ! ईश्वर ऐसे कलाकार और कलाके नामपर उछृंग्खलता फैलानेवालोंको दंड देते हैं, कलासे ईश्वरकी उपासना की जाती उससे समाजको दिशा दी जाती, दिशाहीन नहीं किया जाता, यह आज कलाकारोंको बतानेका समय आ गया है ! ध्यान रहे, कला प्रथमत: ईश्वरप्राप्तिका एक माध्यम है, इसलिए इसे योगमार्गके रूपमें वैदिक सनातन धर्ममें मान्यता प्राप्त है और मनोरंजन मात्र उसका एक भाग है; परंतु आज मनोरंजनके नाम कलाके प्रत्येक क्षेत्रने अपना विभत्सतं स्वरूप ले लिया है ! – तनुजा ठाकुर
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