अध्यात्मके सिद्धान्तोंको अपने जीवनमें उतारनेपर, वृद्धावस्था, अपने निकटके परिजनकी अकाल मृत्यु एवं महामारीमें भी मन स्थिर और शांत रहता है, यही अध्यात्म व साधनाका महत्त्व है । अपने मनके अनुसार साधना करनेसे हम स्वयंको साधक या भक्त समझ सकते हैं; किन्तु खरा साधकत्व जब जीवनमें विषम स्थिति आती है तो ही ज्ञात होता है और जीवनमें गुरु होनेका भी महत्त्व तभी ज्ञात होता है ।
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