जनवरी २३, २०१९
क्या शाकाहार बताकर विक्रय किए जा रहे स्वास्थ्य परिशिष्टमें (हेल्थ सप्लीमेंट) जानवरोंके अंश मिलाए जा रहे हैं ? भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरणको (एफएसएसएआई ) लगता है कि कई सारे स्वास्थ्य परिशिष्टमें ‘जिलेटिन शेल’ नामक वस्तु मिलाई जा रही है, जो मांसाहारी है । खाद्य नियामकने इस बारेमें सभी राज्योंको पत्र लिखा है ।
‘जिलेटिन शेल’ पशुओंके मांसके भागसे बनता है । कई बार मछलियों और अन्य पशुओंसे बनता है । भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरणका कहा है कि क्योंकि ये पशुओंसे बनता है; इसलिए स्वास्थ्य परिशिष्टपर लाल बिन्दू (रेड डॉट) होना चाहिए अर्थात मांसाहारी चिह्न होना चाहिए । इसके स्थानपर ये पदार्थ हरित बिन्दूसे (ग्रीन डॉटसे) विक्रय किए जा रहे हैं, जो ‘लेबलिंग’ विधानका उल्लंघन है ।
खाद्य नियामकने इसको देखते हुए राज्योंको जांच करनेको कहा है । इसके लिए एक अभियान चलाया जाए और देखा जाए कि खाद्य पदार्थपर उचित लेबलिंगका प्रयोग हो रहा है या नहीं ?
“क्या ऐसे कृत्योंके लिए स्वतन्त्रतासे अबतक भ्रमित करनेवाले राजनीतिक दल दण्डके पात्र नहीं ? इतने वर्षोंसे मांसाहारको शाकाहार बताकर विक्रय किया जा रहा है, तो अब तक खाद्य नियामक क्या कर रहा था, जिनका उत्तरदायित्व समस्त खाद्य पदार्थोंकी जांच करना है ? यह केवल एक अनदेखी नहीं है, यह एक अपराध है; क्योंकि इन खाद्य पदार्थोंका उपयोग समस्त हिन्दू अपने दैनिक उपयोगमें करते हैं ! इसके समान उत्तरदायी आजकी गृहिणियां भी है, जिसने अन्नपूर्णा मांके आशीर्वादसे परिपूर्ण भारतीय रसोईका त्याग ही कर दिया है । तामसिकता व आलस्यमें वे भोजन बनाकर ही प्रसन्न नहीं है, जिसके चलते आरम्भसे ही पैकेजिंग खाद्यका चलन बढा है और परिणाम यह हुआ है कि बाजरे, मक्के, गेहूंकी रोटीका सात्विक भोज करनेवाला हिन्दुस्तान २ मिनटमें भोजन बनाकर खाना चाहता है और परिणाम सबके समक्ष ही है !”- सम्पादक, वैदिक उपासना पीठ
स्रोत : न्यूज १८
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