मुस्लिम वर्गकी बेटियोंको चिकित्सक, अभियन्ता आदि बननेकी इच्छा रहती ही है ; लेकिन मुस्लिम बेटियोंको आलिमा -मौलानाकी उपाधि, मुफ्तिया- फतवा देनेके लिए अधिकृत उपाधि, हाफिजा- पूरा कुरआन कंठस्थ करनेपर मिलने वाली उपाधि और कारिया- कुरआन अच्छे सुरमें पढनेपर मिलने वाली उपाधि लेने का रुझान भी बढा है ! ४० से अधिक मुस्लिम महिलाएं धर्मगुरु हैं जो अपने वर्गकी महिलाओंको धार्मिक बातें सीखा रही हैं ! बडे-छोटे नाटकोंके माध्यमसे जागरूकता ला रही हैं।
४० से अधिक मुस्लिम महिलाएं धर्मगुरु
बुलाकीपुरके रहने वाले, कारी मोहम्मद अनीस कादरीकी १८ वर्षकी पुत्री ताबिंदा, कारिया होने के साथ उत्तम वक्ता है । वह अब घोसी मऊसे मुफ्तियाकी दो वर्षीय उपाधि लेना चाहती हैं । ताबिंदाकी छोटी बहन, शोएबा अनीस भी आलिमाका पाठ्यक्रम कर रही है। रसूलपुर जामा मस्जिदके पास रहने वाली मुफ्तिया गाजिया खानम वर्गकी बडी आलिमा हैं। रसूलपुरकी ही समीना जबीं, पुराना गोरखपुरकी नाजिश फातिमा, रसूलपुर दशहरी बागकी गुलफिशां अंजुम, रोजी खातून, कनीज फातिमा, शमीमा खातून, अहमदनगरकी निकहत फातिमा, वसीम बानो, रसूलपुरकी वसीमा खातून सहित काफी संख्यामें मुस्लिम महिलाओंको सीखा रही हैं। मुस्लिम महिलाओंको आलिमा बनानेके लिए मदरसे भी खुले है। आस-पासके जिलोंमें भी मदरसे खुल रहे हैं।
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