उत्तर : इसके कुछ कारण है जो निम्नलिखित हैं –
१. पिछले एक सहस्र वर्षसे हम हिंदुओंने योग्य धर्माचरण छोड़ दिया है अतः हमारे घरके अनेक पूर्वज जो योग्य प्रकारसे साधना नहीं करते थे उन्हें गति नहीं मिली है और हम भी अतृप्त पितरोंके लिए जितने सतर्क होकर पितृ कर्म करने चाहिए वह नहीं करते |
२. अधिकांश लोग देवतासे संबन्धित कुछ देव-कर्म करते हैं; परन्तु उसी प्रकार पितर हेतु भी पितृ कर्म नहीं करते | कारण धर्मशिक्षणका अभाव | अतः अनेक घरोंमें देव कृपा है और पितृ शाप !
३. वर्तमान समयमें अनिष्ट शक्तिका प्राबल्य बढ़ गया है अतः अनेक घरोंके अतृप्त पितरोंको वे सूक्ष्म जगतमें बंधक बना उन्हींके घरके सदस्यको कष्ट देते हैं |
४. सूक्षम जगतकी जानकारी अधिकांश तथाकथित संतोंको भी नहीं होती और कुछ संतोंको होती है तो वे इन सबमें पड़ना नहीं चाहते हैं |
५. कलानुसार वर्तमान समयमें पांच परात्पर पदके (९०% से ऊपर) संतका अवतरण हुआ है और इसकी जानकारी सूक्ष्म जगतकी शक्तियोंको हो गयी है अतः वे गति हेतु अपने वंशजोंको कष्ट दे रही है |
६. पुरुषोंने पितृ-कर्मको प्रधानता देना छोड़ दिया है फलस्वरूप उनके मन और बुद्धिपर इतना आवरण है कि उन्हें यह बात बतानेपर भी विश्वास नहीं होता अतः उन्हें बार-बार बताना पड़ता है |
७. जितना अधिक हम मृत्योत्तर कर्मकी उपेक्षा करेंगे उतना ही अधिक सूक्षमजगतसे हमें कष्ट मिलेगा क्योंकि योग्य साधना एवं श्राद्धकर्म इत्यादि नहीं करनेपर मृत्यु उपरांत कलियुगी जीवको अनिष्ट शक्तिकी योनि सहज ही प्राप्त हो जाती है और इससे सूक्ष्म जगतमें उनका प्रमाण बढ़ता ही जाएगा | अतः पितृ कर्मको प्रधानतासे करना आवश्यक है |-परात्पर गुरु – तनुजा ठाकुर
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