प्रेरक प्रसंग – भीमसेनका अभिमान


 पाण्डु पुत्र भीमको अपनें बलशाली होनेपर अत्यंत गर्व हो जाता है। वनवास कालके मध्य एक दिन वह वनकी ओर विचरते हुए दूर निकल जाते हैं । मार्गमें उन्हे एक वृद्ध वानर मिलता है । वानरकी पूंछ भीमसेनके मार्गमें बिछी होती है । तभी भीम उसे अपनी पूंछ दूर हटा लेनेको कहते हैं; परन्तु वृद्ध वानर कहता है, “अब इस आयुमें मुझसे बार-बार हिला-डुला नहीं जाता तुम तो बहुत हट्टे-कट्टे हो, एक कार्य करो तुम ही मेरी पूंछको हटाकर आगे बढ जाओ।”
भीम उस वृद्ध वानरकी पूंछ उठाकर हटानेके लिए भरसक प्रयत्न करते हैं; परन्तु वह पूंछको एक ‘इंच’ भी हिला नहीं पाते हैं । अन्तमें भीमसेन उन्हे हाथ जोडकर प्रणाम करते हैं और उन्हे अपना परिचय देनेका विनम्र आग्रह करते हैं ।
फिर वृद्ध वानरके रूप धरे हुए पवन पुत्र हनुमान अपने वास्तविक स्वरूपमें आ जाते हैं, और भीमको अपना अहंकार छोडनेकी सीख देते हैं।
सार: बल, बुद्धि और कौशलपर कभी घमंड नहीं करना चाहिए ।


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