कुछ गृहस्थोंको लगता है कि मैं प्रतिदिन तीन माला या नौ माला जप करता हूं; अतः मैं साधक हूं । इस भ्रमको दूर करने हेतु साधककी आज परिभाषा जान लेना आवश्यक है । जो गृहस्थ हैं, वे तभी साधक कहलाने योग्य होते हैंं, जब उनका प्रतिदिन आठसे दस घण्टे नियमित अजपा-जप चलता हो तथा जो प्रतिदिन बैठकर न्यूनतम ३६ माला जप करता हो । साथ ही, जो अपनी चूकें स्वयंप्रेरित होकर प्रतिदिन प्रामाणिक होकर लिखता हो, उसे सभीके साथ साझा करता हो तथा जो प्रत्येक सप्ताह २० घण्टे शरीर या बुद्धिसे सत्सेवा करता हो एवं जो अपनी मासिक आयका पांचसे दस प्रतिशत नियमित संतकार्य या धर्मकार्य हेतु निष्काम भावसे त्याग करता हो तो उसे साधक कहते हैं ! अर्थात जो तन, मन एवं धनसे ईश्वरप्राप्ति हेतु त्याग करता हो, वही साधक कहलाने योग्य होता है । – तनुजा ठाकुर (३.३.२०१५)