वर्तमान कालमें अनेक साधकोंको अपने आराध्य या गुरुके प्रति विकल्प आता है, और वे साधना छोड देते हैं, यह लेख श्रृंखला ऐसे साधकों या भक्तोंके लिए है |


सर्वप्रथम जब तक मन है तबतक संकल्प और विकल्प आनेका क्रम चलता रहता है ! अनके बार जब कोई परिस्थिति, वचन या सुझाव साधकके मनके अनुकूल न हो तो उनके मनमें विकल्प आता है ! सामान्यत: जिन्हें अपनी चूकें (गलतियां) सुननेकी वृत्ति नहीं होती है, या सब कुछ उनके मनके अनुसार हो, ऐसे लोगोंको मनके विरुद्ध प्रसंग होनेसे वे त्वरित प्रतिक्रिया देते हैं और विकल्प इसी तीव्र प्रतिक्रियाका ही प्रकटीकरण होता है ! अतः साधकोंने एक बात गांठ बांध लेनी चाहिए कि सब मेरे मनके अनुरूप हो, या मेरी कोई चूक न बताए, ये सब साधकके लक्षण नहीं हैं; अतः विकल्प आनेपर मनका अभ्यास करना चाहिए; क्योंकि सब कुछ यदि मनके अनुरूप होगा तो साधनाद्वारा मनोलय सम्भव नहीं है !अतः जो भी प्रसंग मनके अनुरूप पिछले छ: माहमें नहीं हुआ हो और उस सम्बन्धमें मनमें तीव्र प्रतिक्रिया निर्माण हुई हो तो उन सबकी सूची बनाएं और उन प्रसंगोंका चिंतन करें एवं अपने विरुद्ध वचन, प्रसंग या सुझावको आपका मन स्वीकार कर सके, यह स्वयंसूचना दें | स्वयंसूचना कैसे देनी है यह हम साप्ताहिक स्वाभावदोष निर्मूलन सत्संगमें बता हे रहे हैं | साथ ही आप सनातनके स्वाभाव दोष निर्मूलन ग्रन्थ भी पढ सकते हैं | 



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