जो धर्म दूसरेका बाधक होता है, वह धर्म नहीं, कुधर्म है !


पिछले तीन सहस्र वर्षोंमें ऐसे अनेक कलियुगी धर्मोंका (जिन्हें पन्थ कहना अधिक उचित होगा) जन्म और प्रचार-प्रसार, मात्र सनातन धर्मको नष्ट करने या उसका विरोध करने हेतु ही हुआ है । ये सभी अपने जन्मके समयसे ही प्रत्यक्ष या परोक्षरूपसे सनातन धर्मपर सदैव आघात करते रहे हैं । वेदों एवं अन्य वैदिक धर्मग्रन्थोंकी एवं ईश्वरके सगुण स्वरूप या उनकी उपासनाकी निन्दा करना, वैदिक कर्मकाण्डोंकी या मृत्योत्तर धार्मिक कृतियोंका उपहास करना, सनातन धर्मावलम्बियोंके धर्मपालन एवं साधनामें बाधा डालना, उन्हें छल, बल या लोभसे अपने मत या पन्थमें प्रवृत्त करना, ये सभी तथाकथित धर्मोंकी मुख्य नीतियां रही हैं, ऐसे सभी तथाकथित धर्मोंके विषयमें द्रष्टा महर्षि व्यासने महाभारतमें लिखा है –
धर्मं यो बाधते धर्मोन स धर्मः कुधर्म तत् ।
अविरोधात् तु यो धर्मः स धर्मः सत्यविक्रम ॥  – महाभारत, शान्तिपर्व
अर्थात जो धर्म, दूसरेका बाधक होता हो, वह धर्म नहीं, कुधर्म है । सच्चा धर्म वही है जो किसी दूसरे धर्मका विरोधी न हो ।



One response to “जो धर्म दूसरेका बाधक होता है, वह धर्म नहीं, कुधर्म है !”

  1. Dr Dnyaneshwar Thorat says:

    A very useful statement

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