स्वस्थ रहने हेतु कुछ महत्त्वपूर्ण सूत्र (भाग-२)


प्रातः आहार अवश्य लें – प्रातः अधि‍क समयतक खाली पेट रहना स्वास्थ्यके लिए हानिकारक होता है और मोटापेके अतिरिक्त पेटके अन्य रोगोंके लिए भी उत्तरदायी होता है । जबकि प्रातःकालीन आहार आपको सम्पूर्ण दिवस स्वस्थ और ऊर्जावान रखता है । ऐसेमें किसी कारणसे दोपहरका भोजन नहीं करनेपर भी शरीरमें आवश्यक ऊर्जा बनी रहती है । प्रातःकाल उठनेके पश्चात अधिकसे अधिक तीन घण्टे उपरान्त आहार अवश्य ग्रहण कर लेना चाहिए ।

आयुर्वेदके अनुसार प्रातःकालीन आहार भरपेट होना चाहिए । अल्पाहारका चलन जो कुछ समयसे समाजमें प्रचलित है, वह आयुर्वेदके अनुसार अयोग्य है; क्योंकि प्रातःकाल जठराग्नि सबसे अधिक प्रदीप्त होती है; अतः भोजन सरलतासे पचता है एवं रात्रिकालका भोजन बहुत ही हलका होना चाहिए, अर्थात सूर्यास्तके पश्चात जठराग्नि मन्द होने लगती है; इसलिए भोजन ठीकसे पचता नहीं; अतः सूर्यास्तके पूर्व रात्रिके कालका भोजन करना, आयुर्वेद अनुसार सर्वश्रेष्ठ होता है या अधिकसे अधिक रात्रिके आठ बजेतक अवश्य ही भोजन कर लेना चाहिए ।

* रात्रिमें ग्यारह बजेसे प्रातः तीन बजेतकका काल सोने हेतु होता है । इस समय जागनेसे शरीरके आन्तरिक अङ्गोंको विश्रान्ति नहीं मिलती है; इसलिए वे शरीरके विषाक्त तत्त्वोंको बाहर निकालनेका कार्य नहीं कर पाते हैं, इससे शरीरमें अनेक रोग हो जाते हैं । 

साथ ही रात्रिका काल तमोगुणी होनेके कारण, ऐसे समयमें नियमित जागरण करनेवालोंको, इस समयमें अधिक क्रियाशील रहनेवाली सूक्ष्म जगतकी अनिष्ट शक्तियां कष्ट देने लगती हैं ।  इससे आध्यात्मिक कष्ट होने लगता है और यदि उन्हें ऐसे कष्ट हों तो वे बढते जाते हैं । वर्तमानकालमें, योग्य साधना व धर्माचरण न करनेके कारण अधिकांश लोगोंको अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट है, जिसका बौद्धिक स्तरपर समाधान सम्भव नहीं ।

ऐसे कालमें जागरण करनेसे शरीरमें सूक्ष्म काली शक्ति निर्मित होती है तथा मन एवं बुद्धिपर भी सूक्ष्म काले आवरणका निर्माण होता है, इससे अनेक प्रकारके शारीरिक रोग, व्यसनाधीनता एवं मनोरोग होते हैं ।



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