‘उपासना’के आश्रमका निर्माण दैवीय योजना है


सूक्ष्म जगत
इन्दौरमें जहांपर ‘उपासना’के आश्रमका निर्माण होनेवाला है, वहांके एक वृक्षके तनेमें तीन वृक्ष हैं, जिसके विषयमें सूक्ष्म जगत अन्तर्गत कुछ दिवस पूर्व हमने एक लेख लिखा था, उसीके सम्बन्धमें मेरे मनमें पांच दिवस पूर्व यह विचार आया कि उसमें दो और वृक्ष लगा देने चाहिए, एक पीपलका और दूसरा गूलरका, जिससे वह पञ्चवटी समान हो जाए ! मैंने एक साधकसे कहा, पीपलका पौधा तो मिल जाएगा; किन्तु गूलरका (औदुम्बरका) कहांसे मिलेगा ?, वह देखना होगा । इसपर वहींपर उपस्थित एक साधकने कहा, “आश्रमके एक पौधेकी कुण्डीमें (गमलेमें) गूलरका पौधा है तो, वही लगा देंगे !” मुझे यह सुनकर अत्यधिक आश्चर्य हुआ, तब ध्यानमें आया कि अभी दो माह पूर्व एक पौधा हमने क्रय कर लगाया था और वह सजावटका पौधा था; किन्तु उसमें एक और पौधा बहुत द्रुत गतिसे बढ रहा था; जिसे मैं निकालनेका भी सोच रही थी; किन्तु वह बहुत सात्त्विक लग रहा था; अतः मैंने सोचा कि यह अनावश्यक पौधा किसका है, यह किसीसे पूछकर हटवा दूंगी ! मैंने गूलरके वृक्ष देखे तो थे; किन्तु उसके पत्ते कैसे होते हैं, यह ध्यानसे उतर चुका था । एक अन्य साधकने कहा कि जहां आश्रम निर्माण होनेवाला है, वहां पीपलके बहुत पौधे उग आए हैं, उसीमेंसे एकको लगा देंगे !
  इस प्रसंगसे मुझे कुछ बातें ध्यानमें आई, एक तो यह कि ‘उपासना’के प्रस्तावित आश्रममें कौनसे पौधे लगनेवाले हैं, इसका भी पूर्व नियोजन ईश्वरने कर रखा है और मेरे मनमें आनेवाले विचार ईश्वरके थे; इसलिए वे पौधे भी आश्रम परिसरमें स्वतः ही उग आए हैं ! वैसे भी जिस वृक्षके (एक तनेसे तीन वृक्षवाले वृक्षके) नीचे ऋषि और देवतागण बैठक करें, वहां कौनसे वृक्ष लगेंगे, इसका निर्णय तो वे ही लेंगे न ! और इससे सूक्ष्मसे आनेवाले मेरे मनमें विचार और स्थूलसे ऐसे पौधेका स्वतः ही उगना, दोनों ही एक दूसरेके पूरक हैं, यह ज्ञात होता है ! इस प्रसंगसे ईश्वर मुझे यह बताना चाहते हैं कि ‘उपासना’के आश्रममें सभी वस्तुओंकी व्यवस्था वे स्वयं करनेवाले हैं और मुझे किसी प्रकारकी चिन्ता करनेकी आवश्यकता नहीं है और वैसे भी चिन्ता मुझे है नहीं; क्योंकि इतनी बडी परियोजनाको (जिसके अन्तर्गत धर्मशिक्षण देनेवाला एक आश्रम, एक गोशाला, एक गुरुकुल एवं प्राकृतिक चिकित्सालय नियोजित है) यशस्वी करना, मेरे सामर्थ्यके बाहरकी बात है, वह ईश्वरीय नियोजन होगा तो ही सिद्ध हो सकता है; अतः मैं निश्चिन्त हूं !
साथ ही आश्रमके सभी तुलसीके पौधे भी मुझे बता रहे है कि आश्रम निर्माण हेतु धनकी उपलब्धि भी शीघ्र होनेवाली है ! व्यक्ति असत्य बोल सकता है; किन्तु पेड-पौधे अभी अनुचित संकेत नहीं देते हैं, सूक्ष्म जगतसे सम्बन्धित मेरी अनुभूति यही कहती है; क्योंकि तुलसीके सभी पौधे इतने सुन्दरसे उगकर आए हैं कि उन्हें देखकर ही लगता है कि ‘उपासना’में कुछ शुभ होनेवाला है ! मैं तो मात्र द्रष्टा बनकर ईश्वरकी लीला समझकर सबका आनन्द ले रही हूं !
  आपको बता दें, पीपल सबसे सात्त्विक वृक्ष माना जाता है और पीपलमें विष्णु तत्त्व और गूलरके वृक्षमें दत्तात्रेय देवताका तत्त्व विराजमान रहता है ! इसप्रकार पञ्च तत्त्वके पश्चात अन्य देवताओंका तत्त्व ‘उपासना’के आश्रममें क्रियाशील होने लगा है, ईश्वरकी इस विशेष कृपा हेतु हम उनके कृतज्ञ हैं !
 यदि उपासनाके इस दैवी कार्यमें (आश्रम निर्माणमें) अपना कुछ योगदान किसी भी माध्यमसे देना चाहते हो तो हमें अवश्य सूचित करें !



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