कहां हमारे यहां राजाको ईश्वरका ही प्रतिनिधि मानकर, समाज एवं विप्रगण भी उनका आदर करते थे और कहां आजके राज्यकर्ताओंको कहीं मषीके (स्याहीके) छीटें तो कहीं टमाटर और कहीं पदत्राण (जूते) फेंककर उनका स्वागत किया जाता है, इससे ही आजके प्रजातन्त्रके जनप्रतिनिधियोंकी पात्रता कितनी गिर चुकी है ?, यह ज्ञात होता है । सत्य है, हमें हमारी पात्रता अनुरूप ही सम्मान या अपमान प्राप्त होता है ! – तनुजा ठाकुर
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