उत्तिष्ठ कौन्तेय !


‘व्हाट्सऐप कॉलिंग’का उपयोग कर रहे हैं आतंकवादी, घाटीमें शासन लगा सकता है रोक
‘कीपैड जेहादी’ अफवाह फैलाकर या किसी घटनाको साम्प्रदायिक रंग देकर विधि (कानून) व्यवस्था बिगाडनेके उद्देश्यसे अन्तर्जालपर (इण्टरनेटपर) विष फैलानेका कार्य करते हैं ।
केन्द्र शासन जम्मू और कश्मीर जैसे अशान्त क्षेत्रोंमें ‘व्हाट्सऐप कॉलिंग’ सेवा रोकनेकी व्यवहारिकताकी समीक्षा करेगी; क्योंकि यह पता चला है कि आतंकी सीमा पार बैठे अपने आतंकी गुटके नेताओंसे निरन्तर सम्पर्कमें बने रहनेके लिए इस सुविधाका उपयोग करते हैं । इतना ही नहीं घाटीमें शान्ति बिगाडनेके लिए आतंकी आधुनिक सूचना तकनीकका भी अत्यधिक उपयोग कर रहे हैं । गृह सचिव राजीव गौबाकी अध्यक्षतामें हुई एक बैठकमें इस सम्बन्धमें स्वीकृति दी है । बैठकमें २०१६ में नगरोटामें सेनाके शिविरमें हुए आतंकी आक्रमणके सम्बन्धमें हालमें आतंकियोंके बन्दी बनाए जानेका विवरण दिया गया । बन्दी बनाए गए ‘जैश-ए-मोहम्मद’के आतंकियोंने जम्मू-कश्मीर पुलिससे कहा कि वे ‘व्हाइटऐप कॉल’के माध्यमसे सीमा पारसे निर्देश ले रहे थे । इस आतंकी आक्रमणमें सात सैन्यकर्मी हुतात्मा हुए थे ।
कश्मीरकी स्थिति इतनी विकट होते हुए भी, वहां अभी तक अन्तर्जाल सुविधाएं सामान्य व्यक्तिको उपलब्ध क्यों करवाई जा रही है ?, यह प्रश्न सर्वप्रथम उठता है । जहांके स्थानीय लोग पिछले दो वर्षोंसे आतंकियोंकी शवयात्रामें बडे प्रमाणमें सहभागी होने लगे हों, जहां बच्चे और युवतियां पथराव करनेवाले गुटोंमें सहभागी होने लगे हों और जहां स्थानीय लोग आतंकियोंको सेनासे बचाने हेतु प्रयत्न करने लगे हों, ऐसे राज्यमें अन्तर्जाल और दूरभाष सब बहुत पहले ही प्रतिबन्धित करना चाहिए था और वह मात्र गिने-चुने लोगोंको जैसे चिकित्सक, सेना और पुलिस इन्हेंको ही मिलना चाहिए एवं सामान्य व्यक्तिके लिए सार्वजनिक दूरभाष ईकाई बनाकर, उसमें ‘सीसीटीवी’ और ध्वनि मुद्रण (कॉल रिकॉर्डिंग) करनेका प्रावधान होना चाहिए था ! आजके इन शासनकर्ताओंको ये सामान्य सी बात भी समझमें क्यों नहीं आती है ? और वे समस्याको बढानेवाले घटकपर विचार कर उसे रोकने हेतु कुछ उपाय योजना क्यों नहीं बनाते हैं, यह समझ नहीं आता ? – तनुजा ठाकुर (१२.६.२०१८)



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