व्यष्टि जीवन और समष्टि जीवन में राम राज्य की स्थापना ही हमारे एकमात्र लक्ष्य होना चाहिए !


वर्तमान समयमें जिस प्रकारसे धर्मग्लानि और नैतिक मूल्योंका पतन हो रहा है और हमारी यह धर्मनिरपेक्ष सरकार जिसे धर्मद्रोही कहना अधिक योग्य होगा नित्य ऐसे कानून ला रही है जो अनैतिकताका पोषण कर रही है, ऐसेमें हम सभीको अपने व्यष्टि और समष्टि जीवन रामराज्यकी स्थापना हेतु प्रयत्नशील होना पडेगा तभी स्वकल्याण एवं समाज कल्याण संभव है | व्यष्टि जीवनमें राम राज्य हेतु अपने षडरिपुओंपर पूर्ण नियंत्रण कर अपने अहंको न्यू करने हेतु प्रयास करना होगा और समष्टि जीवन धर्मग्लानिसे संबन्धित जो भी घट रहा है उसका मुखर होकर विरोध कर उसे रोकना होगा और राष्ट्रोद्रोहियों एवं भ्रष्टाचारियोंको कठोर दंड देने हेतु अवशयक प्रयत्न करने होंगे |

अपनी इंद्रियोको वशमें करनेसे व्यष्टि जीवनमें राम राज्यका पदार्पण होगा और उससे कौटुंबिक जीवनमें सुख, शांति और समृद्धि आयेगा; परंतु इंद्रियोंको वशमें करना इतना सरल नहीं है और उसे स्थितिको साध्य करने हेतु  किस संतके मार्गदर्शनमें साधना करनी होगी और यदि संत अर्थात गुरु जीवनमें न हो तो अध्यात्मशास्त्र अनुसार साधना करनेका प्रयास करना चाहिए, ऐसा करनेसे सद्गुरुका प्रवेश स्वतः ही हमारे जीवनमें हो  जाता है और उसके पश्चात सद्गुरुके मार्गदर्शनमें हम उत्तरोत्तर आध्यात्मिक चरण पार करते हुए आध्यात्मिक प्रगति करने लगते हैं जिसके फलस्वरूप हमरी इंद्रियोंको नियंत्रित करनेमें हम यशस्वी हो जाते हैं और इसीको हमारे अंदर रामराज्यकी स्थिति को साध्य करना कहते हैं | परंतु वर्तमान परिपेक्ष्य में यदि हमने आंतरिक स्तरपर राम राज्यकी स्थिति साध्य कर भी ली हो और जिस समाजमें रहते है वहां दुर्जनोंका राज्य हो तो हमारे लिए धर्माचरण करना, सत्यके मार्गका अनुसरण करना अत्यंत कठिन होगा क्योंकि जब राजयकर्ता व्यभिचारी होते हैं तो उसे सहयोग करनेवाली प्रशासनिक तंत्र एवं व्यापारी वर्ग भी अधर्मी हो जाती हैं और ऐसे में एक ही उपाय रह जाता है कि समाज में भी राम राज्य की स्थापना हेतु हम प्रयत्नशील हों | समाजमें राम राज्य आए इस हेतु हमें, सभीको धर्मके मार्गपर चलने हेतु प्रेरित करना होगा और आवश्यकता पडनेपर दुर्जन और दुराचारी राज्यकर्ताके साम्राज्यको उखाड, सात्विक एवं धर्मनिष्ठ साधक प्रवृत्तिके व्यक्तिको राज्यका कार्यभार सौंपना होगा इस हेतु हमें अत्यधिक प्रयत्न करना होगा |

महाभारत में बताया गया है कि यथा राजा तथा प्रजा अर्थात यदि राजा भ्रष्ट और अधर्मी हो तो प्रजा स्वतः ही अधर्मी हो जाती है; परंतु साथ ही यह भी है कि प्रभु श्रीराम जैसे राजा पानेके लिए प्रजा भी सात्विक होना  चाहिए अतः हमें व्यष्टि और समष्टि दोनों ही स्तरपर प्रयास करना होगा | ‘उपासना हिन्दु धर्मोत्थान संस्थान’ के माध्यमसे हम व्यष्टि और समष्टि स्तरपर यह हमने यह प्रयास आरंभ किया है | प्रवचन, सत्संगके माध्यमसे और फेसबुक और इंटरनेट जैसे अंतर्जालके माध्यमसे धर्म जागृति एवं राष्ट्र रक्षण संबन्धित लेख प्रकाशित करते हैं इससे अनेक व्यक्ति साधना पथपर अग्रसर होने लगे हैं | प्रवचनके माध्यमसे भी अनेक जिज्ञासु निष्काम वृत्तिसे धर्मयज्ञमें अपना योगदान देने हेतु आगे आने लगे हैं | इस प्रकार एक प्रयास हमने आरंभ किया है और इसी प्रयासके अंतर्गत हमने वैदिक उपासना पत्रिका को त्रैमासिकके रूपमें प्रकाशित करने लगे है | इस पत्रिकाके माध्यमसे धर्म जागृति हो और अंतत: एक सबाल हिन्दू राष्ट्रकी स्थापना हो यह ईश्वर चरणोंमें प्रार्थना करते हैं और इस महती उद्देश्यके प्राप्तिमें आपके सहयोग की अपेक्षा करते हैं क्योंकि कलियुग में संगठित रहने में ही हमारी भलाई है !-तनुजा ठाकुर



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