अनुभूति क्या होती है ?


surya tatva

जब कोई साधक साधना पथपर अग्रसर होने लगता है, तो ईश्वर उसे अनुभूति देते हैं और अनुभूतिके सहारे साधक, साधना पथपर और अधिक उत्साहसे आगे बढने लगता है | अनुभूति मन एवं बुद्धिसे परे हमारी सूक्ष्म ज्ञानेन्द्रियोंके माध्यमसे हमारी जीवात्माको होती है, उसका मन एवं बुद्धिके स्तरपर विश्लेषण करना कठिन है | अनुभूतियोंसे हमारी श्रद्धा बढती है | अनुभूतियां लौकिक और अलौकिक जगत दोनोंके संदर्भमें हो सकती है जैसे किसीको यदि कोई व्यावहारिक लाभ मिलनेसे उसकी श्रद्धा बढेगी तो उसे ईश्वर वैसे ही अनुभूति देते है, किसीको यदि आध्यात्मिक अनुभूति होनेसे उसकी श्रद्धा बढती है तो उसे वैसी अनुभूतियां होती हैं | अनुभूति ईश्वरद्वारा एक प्रकारसे साधककी साधनाके मीलके पत्थर (milestones) हैं, जो साधनाको गति प्रदान कर, हमारा पथ प्रदर्शन करती हैं | साधकोंकी अनुभूति सुननेसे या पढनेसे, हमारी भी श्रद्धा बढती है और यदि हमें ऐसी अनुभूति हो, तो समझमें आता है कि फलां घटना वास्तविक रूपमें अनुभूति थी |- तनुजा ठाकुर

 



3 responses to “अनुभूति क्या होती है ?”

  1. ashok sood says:

    Beautiful thoughts which motivate me immensely

  2. Rajiv Ratan Singh says:

    Respected Didi,

    Always following ur post

  3. Sudhanshu singh says:

    Eski विशेषता क्या है

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