केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग


आज हम केदारनाथ ज्योतिर्लिंगके विषयमें जानेंगे :-
केदारनाथ ज्योर्तिलिंगकी कथा :

केदारनाथ महादेवके विषयमें कई कथाएं हैं । स्कन्द पुराणके अनुसार एक समय केदार क्षेत्रके विषयमें जब पार्वतीजीने शिवजीसे पूछा तब भगवान शिवने उन्हें बताया कि केदार क्षेत्र उन्हें अत्यंत प्रिय है । वे यहां सदा अपने गणोंके साथ निवास करते हैं । इस क्षेत्रमें वे तबसे रहते हैं जब उन्होंने सृष्टिकी रचनाके लिए ब्रह्माका रूप धारण किया था ।

केदारनाथ ज्योर्तिलिंग :

केदारनाथ ज्योर्तिलिंगकी कथाके विषयमें शिव पुराणमें वर्णित है कि नर और नारायण नामके दो भाई भगवान शिवकी पार्थिव मूर्ति बनाकर उनकी पूजा एवं ध्यानमें लगे रहते । इन दोनों भाइयोंकी भक्तिपूर्ण तपस्यासे प्रसन्न होकर भगवान शिव इनके समक्ष प्रकट हुए । भगवान शिवने इनसे वरदान मांगनेके लिए कहा तो जन कल्याणकी भावनासे इन्होंने शिवसे वरदान मांगा कि वे इस क्षेत्रमें जनकल्याण हेतु सदा विद्यमान रहें । इनकी प्रार्थनापर भगवान शंकर ज्योर्तिलिंगके रूपमें केदार क्षेत्रमें प्रकट हुए ।

स्कन्द पुराणमें भी इस स्थानकी महिमाका एक वर्णन यह भी मिलता है कि एक व्याघ्र(शिकारी) था, जिसे हिरणका मांस अत्यंत प्रिय था । एक बार यह आखेट(शिकार) की खोजमें केदार क्षेत्रमें आया । पूरे दिन भटकनेके पश्चात् भी उसे कोई सफलता नहीं मिली । संध्याके समय नारद मुनि इस क्षेत्रमें आए तो दूरसे बहेलिया उन्हें हिरण समझकर उन पर वाण चलानेके लिए तत्पर हुआ । जब तक वह वाण चलाता सूर्य पूर्णतः अस्त हो गया । अंधेरा होनेपर उसने देखा कि एक सर्प मेंढकको निगल रहा है । मृत होनेके बाद मेढक शिवरूपमें परिवर्तित हो गया । इसी प्रकार उसने देखा कि एक हिरणको सिंह मार रहा है । मृत हिरण शिवगणोंके साथ शिवलोक जा रहा है । इस अद्भुत दृश्यको देखकर वह बहेलिया विस्मित था । इसी समय नारद मुनि ब्राह्मण वेषमें व्याघ्रके समक्ष उपस्थित हुए ।
व्याघ्रने नारद मुनिसे इन अद्भुत दृश्योंके विषयमें पूछा । नारद मुनिने उसे समझाया कि यह अत्यंत पवित्र क्षेत्र है । इस स्थानपर मृत होनेपर पशु-पक्षियोंको भी मुक्ति मिल जाती है । इसके पश्चात् व्याघ्रको अपने पाप कर्मोंका स्मरण हो आया कि किस प्रकार उसने पशु-पक्षियोंकी हत्या की है । व्याघ्रने नारद मुनिसे अपनी मुक्तिका उपाय पूछा । नारद मुनिसे शिवका ज्ञान प्राप्त करके वह केदार क्षेत्रमें रहकर शिव उपासनामें लीन हो गया । मृत्यु पश्चात् उसे शिवलोकमें स्थान प्राप्त हुआ ।
केदारनाथसे जुडी पाण्डवोंकी कथा
शिव पुराणमें लिखा है कि महाभारतके युद्धके पश्चात् पाण्डवोंको इस बातका पश्चाताप हो रहा था कि उनके हाथों उनके अपने भाई-बंधुओं की हत्या हुई है । वे इस पापसे मुक्ति पाना चाहते थे । इसका समाधान जब इन्होंने वेद व्यासजीसे पूछा तो उन्होंने कहा कि बंधुओंकी हत्याका पाप तभी मिट सकता है जब शिव इस पापसे मुक्ति प्रदान करें । शिव पाण्डवोंसे अप्रसन्न थे अत: पाण्डव जब विश्वानाथके दर्शनके लिए काशी पहुंचे तब वहां शंकर प्रत्यक्ष प्रकट नहीं हुए ; अतः शिवको ढूंढते हुए पांचों पाण्डव केदारनाथ पहुंच गये । पाण्डवोंको आया देखकर शिवने महिषका(भैंसका) रूप धारण कर लिया और भैंसके झुण्डमें शामिल हो गए । शिवके अभिज्ञान(पहचान) करनेके लिए भीम एक कन्दरा(गुफा) के मुखके समीप पैर फैलाकर खडे हो गए । सभी भैसें उनके पैरोंके मध्यसे होकर निकलने लगे किन्तु भैस बने शिवने पैरोंके मध्यसे जाना स्वीकार नहीं किया । इससे पाण्डवोंने शिवको पहचान लिया ।

तदुपरान्त शिव वहां भूमिमें विलीन होने लगे तब भैंस बने भगवान शंकरको भीमने पीठकी ओरसे पकड लिया । भगवान शंकर पाण्डवोंकी भक्ति एवं दृढ निश्चयको देखकर प्रकट हुए तथा उन्हें पापोंसे मुक्त कर दिया । इस स्थानपर आज भी द्रौपदीके साथ पांचों पाण्डवोंकी पूजा होती  है । यहां शिवकी पूजा भैंसके पृष्ठ भागके रूपमें तभीसे चली आ रही है ।
कथाएं यद्यपि भिन्न हैं, तथापि केदारेश्वर रूपमें भगवान शिवका महत्त्व न्यूननहीं होता, केदारश्वर क्षेत्र अनादिकाल तक भक्तोंकी श्रद्धाका केंद्र रहेगा ।



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