हिंदुओंमें राष्ट्राभिमान, धर्माभिमान, स्वभाषाभिमानका स्तर अत्यधिक निम्न हो चुका है


वर्तमान समयमें हिंदुओंमें राष्ट्राभिमान, धर्माभिमान, स्वभाषाभिमानका स्तर इतना निम्न हो चुका है कि हमारी अधिकांश कृतिमें पाश्चात्यीकरण एवं तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादकी दुर्गंध आती है ! फिल्मोंके नाम, प्रतिष्ठानोंके नाम, अपने बच्चोंके नाम, सभीमें हम अपनी संस्कृत भाषाका प्रयोग छोड शेष सभी भाषाका प्रयोग करनेको आधुनिकता कहते हैं ! सम्पूर्ण विश्वमें भारत ही एक मात्र देश होगा जो अपनी सर्वश्रेष्ठ संस्कृति, सर्वश्रेष्ठ धर्म, सर्वश्रेष्ठ भाषा – देववाणी संस्कृतको छोडकर विदेशी सभ्यता, भाषा, परिधान, भोजन और यहां तक की विदेशी स्त्रीको अपना नेता बतानेमें गर्व अनुभव करते हैं ! यह हमारी बुद्धिकी व्यापकताके कारण नहीं, अपितु बुद्धिभ्रष्टताके कारण हुआ है !-तनुजा ठाकुर



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