हमारे वैदिक संस्कृतिमें पात्र देखकर उन्हें मंत्र दिया जाता था !!!


हमारे वैदिक संस्कृतिमें पात्र देखकर उन्हें मंत्र दिया जाता था या वेद पढनेका अधिकार दिया जाता था; परंतु आज स्थिति विपरीत है । एक देसी कहावत है ‘सब धान बाईस पसेरी’ अर्थात मोटे और महीन धान, सबको एक समान मोललगाना अयोग्य है । कलियुगी गुरु बिना पात्रता देखे सभीको गायत्री मंत्र या ‘ॐ’ जपनेका अधिकार दे डालते हैं तो कभी सभीको वेदपठन करनेका ! ५०% अध्यात्मिक स्तरसे कम स्तरका व्यक्ति यदि गायत्री मंत्र या ॐ का जप करे तो इसे उस मंत्रकी शक्ति सहन नहीं होती और कष्ट हो सकता है, और ६०% आध्यात्मिक स्तरके नीचेका व्यक्ति यदि वेदपठन करे तो उसे उसका भावार्थ समझमें नहीं आता अपितु वेदपठनसे उसके अहंकी वृद्धि होती है परंतु कलियुगी गुरुके लिए सब धान बाईस पसेरी है और ऐसे गुरुओंके पास अयोग्य भक्तोंकी भरमार हो जानेपर उनका अहं सातवें आसमानको छू लेता है ! जो धर्म और अध्यात्मशास्त्रके विरुद्ध धर्माचरण सिखाये वे संत कभी हो सकते हैं क्या ? परंतु आजके हिंदु उन्हें अपना आराध्य मान लेते हैं । अतः हिंदुओंको सूक्ष्मका ज्ञान देना, योग्य साधना बताना और अध्यात्म शास्त्र सीखाना परम आवश्यक है !-तनुजा ठाकुर

 



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