अपनी आध्यात्मिक यात्रा किस प्रकार आरंभ करें ?


कलियुगकी सर्वोत्तम साधना – नाम संकीर्तन योग

कलिकालमें साधारण व्यक्तिकी सात्त्विकता निम्न स्तरपर पहुंच गयी है। ऐसेमें वेद उपनिषद्के गूढ भावार्थको समझना क्लिष्ट हो गया है । अतः ज्ञानयोगकी साधना कठिन है । वर्तमान समयमें लोगोंके पास पूजा करनेके लिए दस मिनट भी समय नहीं होता तो अनेक वर्षों तक विधिपूर्वक ध्यान योगकी साधना कहां संभव है ? उसी प्रकार कर्मकांड अंतर्गत यज्ञयाग करना भी वर्तमान समयमें कठिन हो जाता है क्योंकि यज्ञयागके लिए सात्त्विक सामग्री एवं सात्त्विक पुरोहितका होना अति आवश्यक है साथ ही यज्ञयागके लिए कर्मकांडके कठोर नियमोंका पालन करना भी सरल नहीं। अतः कलियुगके लिए सबसे सरल मार्ग है भक्ति योग और उसके अंतर्गत नामसंकीर्तनयोग सबसे सहज और सरल साधना मार्ग है।
हिन्दू धर्ममें ३३ कोटि देवी-देवता हैं । ऐसेमें किस देवताके जपसे शीघ्र आध्यात्मिक प्रगति संभव है, इस बिन्दुपर हम विचार करेंगे ।
यदि हमने किसी संत या गुरुसे गुरुमंत्र लिया है तो उसका जप करना चाहिए और यदि नहीं लिया है तो गुरु ढूंंढनेका प्रयत्न नहीं चाहिए, क्योंकि कलियुगमें ९८ प्रतिशत गुरु ढोंगी होते हैं और कोई अध्यात्मविद संत हैं या नहीं, यह हमें ज्ञात हो जाय, इसके लिए या तो हमारे पास सूक्ष्मका ज्ञान हो या साधनाका ठोस आधार हो, जो साधनाकी आरंभिक अवस्थामें हमें नहीं होता है । अतः गुरु बनानेके फेरमें पड़नेके स्थानपर, अध्यात्मशास्त्र अनुसार साधना करनेका प्रयास करना चाहिए और सनातन धर्ममें इसका अत्यंत सुन्दर विधान है। सभीको अपने कुलदेवताका जप करना चाहिए ।

कुलदेवताके नामजपका महत्व :

१. सर्वप्रथम कुलदेवताका व्युत्पत्ति और अर्थ देख लेंगे । कुल अर्थात मूल और मूलका सम्बन्ध मूलाधार चक्र शक्ति या कुण्डलिनीसे होता है । कुल + देवता , अर्थात् जिस देवताकी उपासनासे मूलाधार चक्र जागृत होता है अर्थात् अध्यात्मिक उन्नति आरम्भ होती है उन्हें कुलदेवता कहते हैं । कुलदेवताका जप आरंभ करनेसे हमारी कुंडलिनी स्वतः ही जागृत हो जाती है । कुंडलिनी शक्ति एक सूक्ष्म शक्ति होती है जो एक सूक्ष्म सर्प समान एक सामान्य व्यक्तिमें सुप्तावस्थामें होती है । हमारी आध्यात्मिक प्रयाससे यह जागृत हो जाती है और हमारी आध्यात्मिक प्रगतिके लिए उत्तरदाई होती है ।
हमारे शरीरमें ७२००० सूक्ष्म नाड़ियां होती हैं जिसमे तीन नाड़ियां मुख्य होती है । हमारे रीढकी हड्डीमें एक सूक्ष्म नाडी होती है जिसे हम सुषुम्ना नाडी कहते हैं, सुषुम्न नाडीके बाईं ओर चन्द्र नाडी होती है और दाहिने ओर सूर्य नाडी होती है । कुंडलिनी जागृत होनेपर इस सुषुम्ना नाडीमें कुंडलिनी जागृत हो ऊपरकी दिशाकी ओर बढने लगती है और उस नाडीमें स्थित छह चक्रोंका(मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्ध और आज्ञा ) भेदन कर सहस्रार चक्र अर्थात आध्यात्मिक प्रगतिके अंतिम चक्र तक पहुंच जाती है और तब हमारी साधना पूर्ण हो जाती है । कुलदेवताके जपसे मूलाधार चक्रका भेदन हो जाता है और हमारी आध्यात्मिक यात्रा आरंभ हो जाती है ।
२. हम गंभीर बीमारीमें स्वनिर्धारित औषधि नहीं लेते ; उस क्षेत्रके अधिकारी व्यक्ति, अर्थात डॉक्टरके मतानुसार लेते हैं । उसी प्रकार भवसागरमें फंसनेके गंभीर रोगसे बचनेके लिए अध्यात्मविदके मार्गदर्शन अनुसार साधना करना आवश्यक है । ऐसे सत्पुरुष समाजमें कम ही मिलते हैं । ऐसेमें प्रश्न उठता है कि किस देवताका नामका जप किया जाय ? ईश्वरने हमारी इस अडचनका भी निराकरण किया है उन्होंने प्रत्येक व्यक्तिकी उसकी उन्नतिके लिए उसे योग्य तथा आवश्यक कुलमें जन्म दिया है । हम बीमारीमें अपने नियमित (फॅमिली ) डॉक्टरके पास जाते हैं क्योंकि उन्हें हमारी शारिरप्रकृति व रोगकी जानकारी रहती है । यदि किसी कार्यालयमें शीघ्र काम करवाना हो, तो हम परिचित व्यक्तिके पास जाते हैं । उसी प्रकार ३३ करोड़ देवताओंमें से कुलदेवताके प्रति ही हमें अपनापन लगता है; वही हमारी पुकार सुननेवाले व आध्यात्मिक उन्नतिके लिए उत्तरदायी होते हैं । जब ब्रह्माण्डके सर्व तत्त्व पिंडमें आ जाते हैं तब साधना पूर्ण होती है । सर्व प्राणियोंमें केवल गायमें ही ब्रह्माण्डके सर्व देवताओंकी स्पंदन- तरंगोंको ग्रहण करनेकी क्षमता है इसीलिए कहा गया है कि गायके उदरमें ३३ करोड़ देवता वास करते हैं । उसी प्रकार ब्रह्माण्डके सर्व तत्त्वोंको आकर्षित कर उनमे ३०% तक लानेकी क्षमता केवल कुलदेवताके नामजपमें है । इसके विपरीत शंकर, विष्णु, गणपति, लक्ष्मी इत्यादि देवताओंका नामजप केवल विशिष्ट तत्त्वको बढ़ानेके लिए होता है ।
३. कुलदेवता पृथ्वी तत्त्वके देवता हैं इसलिए उनकी उपासनासे साधना आरम्भ करनेपर कष्ट नहीं होता । पांच तत्त्व हैं पृथ्वी, आप, तेज, वायु एवं आकाश । क्षमता न होते हुए सीधे ही तेज तत्त्वकी उपासना (उदा. गायत्री मंत्रजप ) करनेसे कष्टकी संभावना रहती है । वर्तमान समयमें लोगोंकी सात्त्विकता निम्न स्तरपर पहुंच गयी है ऐसेमें कुलदेवताका जप पृथ्वी तत्त्वसे संबन्धित होनेके कारण साधना आरंभ करनेपर कष्ट नहीं होता अपितु शीघ्र ही अनुभूतियाँ होने लगती हैं और हमारी आध्यात्मिक यात्रा को गति मिलती है ।
४. जिस प्रकार इस स्थूल शरीरके माता –पिता होते हैं उसी प्रकार हमारे जीवन में गुरुके प्रवेश होनेसे पूर्व इस सूक्ष्म शरीरके माता –पिता कुलदेवता होते हैं ।
५. कुलदेवता हमारे भौतिक एवं आध्यात्मिक प्रगति हेतु उत्तरदाई देवता हैं।  जिनके घरपर कुलदेवता की कृपा होती है और पितर शांत होते हैं उस घर में धन, धन्य, सुख, ऐश्वर्य में कोई कमी नहीं होती।
६. उनका जप पूर्ण होनेपर गुरु स्वत: ही हमारे जीवनमें प्रवेश करते हैं ।

यहांं एक विशेष मुद्दा स्पष्ट करना चाहूंगी कि यदि किसी साधकका आध्यात्मिक स्तर ५०% से अधिक हो तो ऐसे साधकने कुलदेवताकी अपेक्षा किसी उच्च कोटिके देवता जैसे राम, कृष्ण, दुर्गा, शिव, हनुमान, दत्त, गणपतिमेंसे जो उनके आराध्य हों, उनका जप करना चाहिए ।

हमारा आध्यात्मिक स्तर क्या है इस विषयको समझने हेतु सर्वप्रथम संक्षेपमें स्तरानुसार साधना जान लें

संपूर्ण सृष्टिका निर्माण ईश्वरने किया है । अतः सजीव-निर्जीव सभीमें कुछ-न-कुछ मात्रामें सात्त्विकता रहती है और ईश्वरसे पूर्णत: एकरूप हुए संतों की सात्त्विकता सौ प्रतिशत होती है । मनुष्य योनिमें जन्म लेनेके लिए कमसे कम बीस प्रतिशत सात्त्विकता होनी चाहिये । बीस प्रतिशत आध्यात्मिक स्तरका व्यक्ति नास्तिक समान होता है, उसे अध्यात्म, देवी-देवता, धर्म इत्यादिमें कोई रूचि नहीं होती । तीस प्रतिशत स्तर होनेपर व्यक्ति कर्मकांड अंतर्गत पूजा-पाठ करना, तीर्थक्षेत्र जाना, स्त्रोत्र-पठन करना जैसी साधना करने लगता है । पैंतीस प्रतिशत स्तर साध्य होनेपर खरे अर्थमें उसकी अध्यात्मके प्रति थोडी रूचि जागृत होती है और वह साधना करनेका प्रयास आरम्भ करता है । चालीस प्रतिशत स्तर होनेपर वह मनसे नामजप करनेका प्रयास करता है और पैंतालीस प्रतिशत स्तर आनेपर उसकी अध्यात्ममें रूचि बढने लगती है और अनेक प्रकारकी साधनासे एक प्रकारकी साधनामें उसका प्रवास आरम्भ हो जाता है ।पचास प्रतिशत स्तर साध्य होनेपर वह व्यावहारिक जीवनकी अपेक्षा आध्यात्मिक जीवनको अधिक महत्व देने लगता है और अखंड नामजप करना, सत्संगमें जाना और सेवा करना जैसी आध्यात्मिक कृति निरंतरतासे करने लगता है । पचपन प्रतिशत स्तर साध्य करनेपर खरे गुरुका उसके जीवनमें प्रवेश हो जाता है और वह तन, मन धन तीनोंका पचपन प्रतिशत भाग किसी गुरु को, या गुरुके कार्यके लिए या धर्मं कार्यके लिए अर्पण करने लगता है । साठ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तरपर खरे अर्थमें सेवा आरम्भ होती है। इससे नीचेके स्तरपर मन एवं बुद्धिद्वारा विषय समझकर सेवा करनेका प्रयास करते हैं।सत्तर प्रतिशत स्तरपर साधक संतके गुरु पदपर आसीन होता है और अस्सी प्रतिशत आनेपर सदगुरू पदपर आसीन होता है और नब्बे प्रतिशत स्तरपर परात्पर पद साध्य हो जाता है । इसके पश्चात् वह जीवात्मा ईश्वरसे पूर्ण एकरूपता हेतु मार्गक्रमण करने लगती है ।

वर्तमान समय में सौ प्रतिशत जनसंख्या को मध्यम से तीव्र स्तरका पितृ दोष है । ऐसेमें सर्वप्रथम पितृ दोषके कष्टके निवारणार्थ ‘श्री गुरुदेव दत्त’ जप चार से छह घंटे जपें तत्पश्चात कुलदेवताका जप करें । पितृ दोष क्या है और उसके निवारणार्थ क्या प्रयास कर सकते हैं यह निम्नलिखित है ।

पितृ दोषके लक्षण एवं निवारण के उपाय

आज सम्पूर्ण मानव जाति धर्माचरणके अभावके कारण, माध्यमसे तीव्र स्तरके पितृदोषके कष्टसे प्रभावित है | फलस्वरूप आज अनेक लोगोंके घरोंमें अतृप्त पूर्वजोंके कारण अनेक प्रकारके कष्ट देखे गए हैं जैसे विवाह न होना, निःसंतान होना, गर्भपात हो जाना, पति-पत्नीमें अनबन रहना, संबंध विच्छेद (तलाक) हो जाना, घरके सदस्योंका व्यसनी होना, घरके मुखिया या बड़े संतानका शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूपसे सदैव कष्टमें रहना, कुलमें किसी व्याधिका वंशानुगत हो जाना, अर्थोपार्जनमें सदैव अडचनें आना इत्यादि जैसे कष्ट, पितृदोषके कारण हो सकते हैं ।
ऐसेमें निम्नलिखित उपाय करें :
१. घरमें मृत पितरोंके चित्र न लगाएंं ।
२. श्रद्धापूर्वक मासिक एवं वार्षिक श्राद्ध करें ।
३. प्रतिदिन ‘श्री गुरुदेव दत्त’ का चारसे छह घंटे जप करें ।
४. दत्तात्रेय देवताकी नियमित पूजा करें ।
५. कष्ट तीव्र हो तो किसी दत्तक्षेत्रमें जाकर वहांं थोडेे दिन रहकर दत्त उपासना करना ।
६. धर्मप्रसारमें यथाशक्ति तन, मन, धन, बुद्धि एवं कौशल्य अर्पण कर योगदान दें ।
७. किसी संतकी सगुण सेवा करें अथवा उनके कार्यमें यथाशक्ति सहभागी हों ।
८. पिंडदान या त्रिपिंडी श्राद्ध करें ।
९. अधिकसे अधिक लोगोंको दत्तात्रेयका जप एवं पितृ-दोष निवारण हेतु सारे मुद्दे बताएं ।
१०. घरमें काले रंगके वस्त्रका प्रयोग, यथासंभव न करें, सनातन धर्ममें काले रंगके वस्त्रको शनि-दोष निवारण हेतु, या मकर संक्रांति के दिन पहननेके अलावा उस वस्त्रका प्रयोग साधारण व्यक्तिके लिए निषेध किया गया है।
११. पितृपक्षमें ब्राह्मण भोजन कराएं ।
१२. पितृपक्षमें प्रतिदिन ७२ माला ‘श्री गुरुदेव दत्त’जप करें
१३. पितृपक्षमें घरके पुरुषने पितरोंको प्रतिदिन जल-तिल तर्पणकर, श्राद्ध करना चाहिए ।
दत्तात्रेयके नामजपद्वारा पूर्वजोके कष्टोंसे रक्षण कैसे होता है ?
कलियुगमें अधिकांश लोग साधना नहीं करते, अत: वे मायामें फंसे रहते हैं । इसलिए मृत्युके उपरांत ऐसे लोगोंकी लिंगदेह अतृप्त रहती है । ऐसी अतृप्त लिंगदेह मर्त्यलोक(मृत्युलोकमें) फंस जाती है । (मृत्युलोक, भूलोक व भुवलोकके बीचमें है ।) मृत्युलोकमें फंसे पूर्वजोंको दत्तात्रेयके नामजपसे गति मिलती है। वे अपने कर्मानुसार आगेके लोककी ओर अग्रसर होते हैं । अत: स्वाभाविक ही उनके संभावित कष्ट कम हो जाते हैं ।
दत्तात्रेयके नामजपसे निर्मितशक्ति द्वारा नामजप करने वालेके आसपास सुरक्षाकवचका निर्माण होता है। इसे सुनने हेतु हमारे जालस्थल (www.vedicupasanapeeth.org) के होमपेज पर जाएंं।

वर्तमान कालमें ५०% साधारण व्यक्तियोंको और ७०% अच्छे साधकोंको अनिष्ट शक्तिके कारण तीव्र कष्ट है । इस हेतु सात नाम जपका प्रयोग कर योग्य नाम जप करनेका प्रयास करें ।

अनिष्ट शक्ति क्या होती है ?

ईश्वरने सृष्टिकी रचनाके साथ ही दो शक्तियों, देव और असुरका निर्माण किया, जिसमें एक है इष्टकारी शक्ति, कल्याणकारी शक्ति और दूसरा अनिष्ट शक्ति अर्थात् विनाशकारी शक्ति । जब किसी दुर्जनकी मृत्यु हो जाए और उसका क्रिया-कर्म वैदिक रीतिसे न हुआ हो, या उसके कर्मानुसार उसे गति न मिले, तो वे भी अनिष्ट शक्तिके गुटमें चले जाते हैं । उसी प्रकार हमारे पूर्वजोंने पापकर्म किए हों, या उनकी कोई इच्छा अतृप्त रह गई हो और हम अतृप्त पितरोंकी सद्गतिके लिए योग्य साधना नहीं करते हों, तो वे भी अनिष्ट शक्तिके गुटमें चले जाते हैं और साधनाके अभावमें बलाढ्य आनिष्ट शक्तियां उन्हें सूक्ष्म जगतमें बंधक बना, उनसे बुरे कर्म करवाती हैं; अतः उनसे भी कष्ट होता है । वर्तमान समयमें धर्माचरणके अभावमें व्यष्टि (वैयक्तिक) एवं समष्टि (सामाजिक) जीवनमें अनिष्ट शक्तिका कष्ट बढ गया है और चारों ओर ‘त्राहिमाम्’ की स्थिति बन गयी है ।

अनिष्ट शक्तिके कारण किस प्रकारके कष्ट हो सकते हैं ?

अवसाद (डिप्रेशन), आत्म-हत्याके विचार आना, अत्यधिक क्रोध आना और उस आवेशमें अपना आपा पूर्ण रूपसे खो देना, मनमें सदैव वासनाके विचार आना, नींद न आना, अत्यधिक नींद आना, शरीरके किसी भागमें वेदना होना और औषधिद्वारा उस वेदनाका ठीक न हो पाना, मनका अत्यधिक अशांत रहना, व्यवसायमें सदैव हानि होना, परीक्षाके समय सदैव कुछ-न-कुछ अडचन आना, घरमें सदैव कलह-क्लेश रहना, लगातार गर्भपात होना, बिना कारण आर्थिक हानि होना, रोगका वंशानुगत होना, व्यसनी होना, लगातार अपघात या दुर्घटना होते रहना, नौकरी या जीविकोपार्जनमें सदैव अडचन आना, सामूहिक बलात्कार, समलैंगिकता, भयावह यौन रोग, यह सब अनिष्ट शक्तियोंके कारण होते हैं ।
यदि किसीको अनिष्ट शक्तिका कष्ट हो तो आरम्भमें एक वर्षके लिए ‘श्रीगुरुदेव दत्त’ का जप अधिकसे अधिक करना चाहिए और उसके पश्चात ‘सात नामजपका प्रयोग’ कर, जिस नामजपसे कष्ट हो, उनका अखंड जप करना चाहिए । एक महीनेके पश्चात पुनः प्रयोग कर नए नामजपको ढूंढ कर निकालना चाहिए । ऐसे करनेसे उनके जीवनमें सूक्ष्म अनिष्ट शक्तियोंद्वारा दिये जानेवाले कष्ट अति शीघ्र कम हो जाते हैं; अन्यथा साधनाका व्यय, अनिष्ट शक्तिद्वारा दिए जा रहे कष्टपर मात करने हेतु हो जाता है और आध्यात्मिक प्रगति नहीं होती ।
‘सप्त देवताका नामजप प्रयोग’ कैसे कर सकते हैं, यह संक्षेपमें देख लेते हैं । स्नानकर या हाथ मुंह धोकर, स्वच्छ और पवित्र स्थानपर बैठ जाएँ और राम, कृष्ण, दुर्गा, शिव, हनुमान, दत्त, गणपति, इनके क्रमशः ‘श्री राम जय राम जय जय राम’, ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’, ‘ॐ श्री दुर्गा देव्यै नमः’ ‘ॐ नमः शिवाय’, ‘ॐ हं हनुमते नमः’, ‘ॐ श्री गुरुदेव दत्त’, ‘ॐ गं गणपतये नमः’ जपके समय किस जपसे सर्वाधिक कष्ट हो रहा है यह देखें । जिस जपसे सबसे अधिक कष्ट हो रहा हो, वह जप अगले एक महीनेके लिए करना चाहिए ।
यदि जप करते समय तनिक भी कष्ट न हो तो जिस जपमें सबसे कम विचार आयें, वह जप करें । जप करते समय नींद आना, बुरे विचार आना, जप करनेका मन न करना, जी मितलाना, उबासियां आना, शरीरमें वेदना होना जैसे कष्ट हों तो समझें कि अनिष्ट शक्तिका कष्ट है । इन्हीं सभी सात जपको पांच-पांच मिनट करें और एक जप पांच मिनट करनेके पश्चात उस दौरान क्या हुआ, यह एक कॉपीमें लिख कर पुनः जप आरम्भ करनेसे पहले अगले उपास्य देवताको प्रार्थना करें । “हे भगवन, मेरे जीवनमें जो भी अनिष्ट शक्ति मेरे व्यावहारिक एवं आध्यात्मिक जीवनमें अडचनें निर्माण कर रही हैं, उनपर मात पाने हेतु नामजपका प्रयोग कर रही/रहा हूं । नामजपके प्रयोगमें सहायता करें और इससे पहले जो हमने जप किया, उसका प्रभाव इस जपके समय न हो ऐसी आप कृपा करें’’ । प्रत्येक महीने जपका प्रयोग क्यों करना चाहिए ? एक महीनेमें या तो वह अनिष्ट शक्ति उस जपका कोई तोड ढूंढ लेती है, या उसे मुक्ति मिलनेपर, कोई दूसरी अनिष्ट शक्ति हमें कष्ट देने लगती है । अतः जब तक अनिष्ट शक्तिके कष्ट कम न हो जाएंं, तब तक यह सात नामजपका प्रयोग करते रहना चाहिए । उपर्युक्त बताए गए मुद्देका आधार हमारे श्रीगुरु – परात्पर गुरु परम पूज्य डॉ. जयंत बालाजी आठवलेद्वारा लिखे एवं सनातन संस्थाद्वारा प्रकाशित ग्रंथ “अध्यात्मका प्रस्तावनात्मक विवेचन’’ है ।

अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट किसे हो सकता है ?
सर्वप्रथम तो यह बता दूं कि अनिष्ट शक्तियोंके कष्टसे आज संपूर्ण मानव जाति पीडित है ।
तीन वर्गोंमें इसका विभाजन कर कारण बताती हूं ।
१. जो साधना नहीं करते
२. . जो साधना करते है
३. संत
आज तीनों ही वर्गको कष्ट है, क्यों ?

जो साधना नहीं करते –  उनकी स्थिति अतिदयनीय होती है वे पूर्णतः अनिष्ट शक्तियोंके नियंत्रणमें चले जाते हैं। आजकी अर्ध्नंगी मॉडल, आजके भ्रष्ट नेता , समलैंगिक लोग, बलात्कारी, अहंकारी, आजके अति आधुनिक व्यक्ति एवं पाश्चात्य संस्कृतिके रंगमें रंगे लोग, मद्यपि इत्यादि सबपर अनिष्ट शक्तियोंका सर्वाधिक नियंत्रण होता है, या यूं कहें कि शरीर उनका, मन और बुद्धि अनिष्ट शक्तियों की ! आज समाजके पचास प्रतिशत साधारण लोगोंको अनिष्ट शक्तियोंका तीव्र कष्ट है !

जो साधना करते हैं-  उन्हें वे कष्ट इसलिए देते हैं कि वे भी साधना पथसे हट जाएं और उनके मनमें धर्म अध्यात्म , संत और गुरुके प्रति विकल्प आ जाये जिससे कि उनकी साधना खंडित हो जाये और अनिष्ट शक्तियां उनके ऊपर नियंत्रण कर लें । आज समाजके सत्तर प्रतिशतसे अधिक प्रमाणमें अच्छे साधकोंको कष्ट है ।

संतको कष्ट क्यों होता है ? संतकी सूक्ष्म देह ईश्वरके निर्गुण स्वरूप अर्थात् समाजसे समष्टि स्वरुपसे एकरूप होता है, अतः उन्हें भी कष्ट होता है ।

किसीको अनिष्ट शक्तियोंसे संबन्धित कष्ट हैं यह कैसे समझें ?
इस सम्बन्धमें कुछ बातें ध्यान रखें, जो भी सामान्य नहीं हो रहा है और बुरा हो रहा है, वह अनिष्ट शक्तियोंके कारण हो सकता क्योंकि असामान्य और इष्ट करनेकी क्षमता साधारण व्यक्तिमें नहीं होती, वह केवल ईश्वरमें या संतोंमें होती है। उसी प्रकार सामान्य स्तरपर कुछ बुरा हो रहा हो और बुद्धिसे समझमें न आये और शारीरिक, बौद्धिक एवं मानसिक स्तरपर प्रयास करनेपर भी विशेष सफलता न मिले तो समझ लें कि वह अनिष्ट शक्तियोंके कारण हो रहा है, चाहे वह स्वास्थ्यसे संबंधित हो, अपने सगे-संबंधियोंसे संबंधित हो या अर्थोपार्जनसे संबंधित हो ।
अनिष्ट शक्तियोंसे बचाव कैसे करें ?
* भारतीय संस्कृति अनुसार आचरण करें
* पाश्चात्य संस्कृतिका कमसे कम अनुकरण करें
१. अपनी वेशभूषा भारतीय संस्कृतिके अनुसार रखें, ध्यान रखें भारतीय संस्कृति-अनुसार वेशभूषासे हमारा अनिष्ट शक्तियोंसे रक्षण होता है और देवताके तत्त्व भी हमारी ओर आकृष्ट होते हैं । अतः स्त्रियोंको साडी और पृरुषोंको धोती, कुर्ता या कुर्ता-पायजामा धारण करना चाहिए । स्त्रियोंको भूलसे भी पुरुषोंके वस्त्र नहीं धारण करने चाहिए; इससे स्त्रियोंको जनेन्द्रियां संबंधित कष्ट होते हैं ।
तिलक या टीका लगाएं इससे भी अनिष्ट शक्तियोंकी काली शक्ति आज्ञा चक्रमें प्रवेश नहीं कर पाती हैं ।
१. पुरुषने शिखा और यदि यज्ञोपवीत हो चुका हो तो उसे धारण करें ।
२. स्त्रियोंने भूलसे भी मद्य और सिगरेट नहीं पीनी चाहिए, इससे स्त्रीकी योनि अनिष्ट शक्तियोंके लिए पोषक स्थान बन जाती है और उनकेद्वारा उत्पन्न बच्चोंको जन्मसे ही अनिष्ट शक्तियोंके कष्ट होते हैं ।
३. जहां तक संभव हो काले वस्त्रका प्रयोग पूर्ण रूपसे टालना चाहिए, इससे भी अनिष्ट शक्तियोंका कष्ट होता है ।
४. बाहरका भोजन विशेष कर डब्बाबंद (tinned) खाद्य सामाग्रीको ग्रहण करना टालना चाहिए, यदि ग्रहण करना ही पडे तो प्रार्थना और नामजप कर ग्रहण चाहिए ।
५. सुबह सूर्योदयसे पहले उठना चाहिए सूर्योदयके पश्चात उठनेसे मन एवं बुद्धिपर आवरण निर्माण होता है |
६. किसी भी प्रकारके व्यसनको चखनेसे भी बचना चाहिए ।
७. मांसाहारके बजाय शाकाहारकी ओर प्रवृत्त होना चाहिए ।
८. प्रतिदिन आठ-दस लोटे जलमें नमक पानी और देसी गायके गौमूत्रका एक चम्मच डाल पहले स्नान करना चाहिए तत्पश्चात सामान्य स्नान करना चाहिए ।
९. आजकलके डियो और तेज सुगंधी अनिष्ट शक्तियोंको आकृष्ट करनेकी प्रचंड क्षमता रखते है उन्हें लगाना पूर्णत: टालना चाहिए यदि लगाना ही हो तो पूजामें देवताको अर्पण करनेवाले फूलोंसे बने या नैसर्गिक पदार्थसे बने इत्र लगाना चाहिए ।
१०. सिंथेटिक और चमडेकेे वस्त्र पहनना पूर्णत: टालना चाहिए ।
११. टीवी और नेट अधिक समय नहीं देना चाहिए वे रज-तमके स्पंदन प्रक्षेपित करते हैं और हमारे मन एवं बुद्धिपर आवरण निर्माण करते हैं ।
१२. भुतहा एवं डरावनी (हॉरर) फिल्म्स और धारावाहिक देखना टालना चाहिए, इससे भी घरमें काली शक्ति प्रक्षेपित होती है ।
१३. नमक-पानीका नियमित उपाय करना चाहिए, जिन्हें कष्ट हो उन्हें दो बार अवश्य ही करना चाहिए । नमक-पानीका उपाय नियमित करनेसे मन एवं बुद्धिपर छाया काला आवरण नष्ट हो जाता है और मन एकाग्र और शांत रहनेमें सहायता मिलती है ।
१४. सात्त्विक और पारंपरिक अलंकार धारण करने चाहिए ।
१५. सोते समय पूर्ण अंधेरा कर नहीं सोना चाहिए संभव हो तो घीका या तेलका दिया जलाकर सोना चाहिए अन्यथा पीले रंग या सफेद रंगके नाइट बल्ब जलाकर सोना चाहिए ।
१६. नामजप अधिकसे अधिक प्रमाणमें करना चाहिए ।
१७. पितरोंके चित्र घरमें रखना टालना चाहिए । किसी संतकी कृपा पानेका प्रयास करने हेतु उनके बताए अनुसार साधना करना चाहिए ।
१८. गंगा, जमुना नर्मदा, कावेरी जैसे पवित्र नदियोंमें, या समुद्र स्नानका यदि संधि मिले तो अवश्य ही करना चाहिए, इससे ही अनिष्ट शक्तियोंके कष्ट कम हो जाते हैं ।
१९. घरका वातावरणको शुद्ध करनेका नियमित प्रयास करना चाहिए; अतः घरमें वास्तु शुद्धिके सारे उपाय नियमित करें ।
२०. यदि संभव हो तो घरमें देसी गाय अपने प्रांगणमें रखें ।
२१. अपने धनका त्याग धर्म-कार्य हेतु नियमित करना चाहिए ।
२२. ग्रन्थोंका वाचन करें और उसे जीवनमें उतारनेका प्रयास करें ।
२६. घर एवं बाहर स्वभाषामें संभाषण करें । संस्कृत देव वाणी है; अतः इसे स्वयं भी सीखें और अपने बच्चोंको भी अवश्य सिखायें । संस्कृत पढनेसे तेजस्विता बढती है
२७. नियमित योगासन एवं प्राणायाम करें । इससे हमारे शरीरमें एकत्रित काली शक्ति नष्ट होती है और स्थूल देह एवं मनोदेह (मन) की ३०% तक शुद्धि होती है, जिससे हम शारीरिक रूपसे स्वस्थ रह सकते हैं ।
२८. फिल्मी गाने और विशेषकर पाश्चात्य संगीतको अधिक समय सुननेसे बचें । इससे भी हमारे शरीरमें काली शक्ति प्रवेश करती है ।
२९. स्त्रियोंको अपने केश लंबे रखने चाहिए और नाखून नहीं बढ़ाने चाहिए।  स्त्रियोंको अपने केश खुले नहीं छोडने चाहिए ।
३०. सोनेसे पूर्व पंद्रह मिनट नामजप कर, उपास्य देवतासे कवच मांगकर सोना चाहिए । इससे रात्रिमें होने वाले अनिष्ट शक्तिके आक्रमणसे बच सकते हैं ।
३१. अपने स्वभाव दोषको दूर करनेके लिए प्रतिदिन अपनी चूक एक अभ्यास पुस्तिकामें लिखनी चाहिए और उस प्रकारकी चूक पुनः न हो, यह प्रयास करना चाहिए।
३२. अनावश्यक बातें करना, अपशब्द बोलना इत्यादि पूर्णत: टालना चाहिए ।

घरके वास्तुको शुद्ध और पवित्र रखें !
आजकल ‘वास्तु’, यह शब्द एक फ़ैशन समान प्रचलित हो गया है और अनेक ढोंगी इस शास्त्रका आधार ले, लोगोंको दिशाहीनकर, उन्हें लूटते हैं । अतः सर्व-सामान्य व्यक्तिको इसके बारेमें शिक्षित करना और वास्तु शुद्धिके सरल उपाय बताना हम सबका कर्तव्य है ।
सर्वप्रथम यह जान लें कि वास्तुके अनुसार अधिकतम ६% ही कष्ट हो सकते हैं और शेष कष्ट अन्य कारणोंसे होते हैं; परंतु वास्तुका शुद्ध एवं पवित्र रहना, हमारी साधना एवं सुखी जीवनके लिए आवश्यक एवं पूरक भी है ।घर यदि सौ प्रतिशत वास्तुशास्त्र अनुसार भी बना हो, तो भी आपके जीवनमें कष्ट आएंगे ही । अतः वास्तु शुद्धिके प्रयत्नके साथ ही योग्य प्रकारसे साधना करना परम आवश्यक है । तो आइए वास्तु शुद्धिके कुछ सरल उपाय देख लें ।
१. तुलसीके पौधे लगायें
२. घर एवं आसपासके परिसरको स्वच्छ रखें
३. घरमें नियमित गौ मूत्रका छिडकाव करें, देसी गायके गौ मूत्रमें अनिष्ट शक्तिको दूर करनेकी सर्वाधिक क्षमता होती है
४. घरमें सप्ताहमें दो दिन कच्ची नीमपत्तीकी धुनी जलाएं
५. घरमें कंडे या लकड़ीसे अग्नि प्रज्ज्वलितकर, धुना एवं गूगुल जलाएं और उसके धुएँको प्रत्येक कमरेमें थोडी देर दिखाएंं
६. संतोंके भजन, स्त्रोत्र पठन या सात्त्विक नामजपकी ध्वनि चक्रिका, अर्थात सीडी चलायें । (हमारे पास वास्तु शुद्धि हेतु मंत्रजपकी सीडी उपलब्ध है ।)
७. घरमें अधिकाधिक समय नामजप करें, नामजपसे निकलनेवाले स्पंदनसे घरकी शुद्धि होती है ।
८. घरमें कलह-क्लेश टालें, वास्तु देवता “तथास्तु” कहते रहते हैं, अतः क्लेशसे क्लेश और बढ़ता है और धनका नाश होता है ।
९. सत्संग प्रवचनका आयोजन करें ।अतिरिक्त स्थान घरमें हो तो धर्मकार्य हेतु या साप्ताहिक सत्संग हेतु वह स्थान किसी संत या धर्मकार्य हेतु अर्पण करें ।
१०. संतोंके चरण घरमें पड़नेसे घरकी वास्तु १०% तक शुद्ध हो जाती है ।अतः संतोके आगमन हेतु अपनी भक्ति बढ़ाएं ।
११. प्रसन्न एवं संतुष्ट रहें । घरके सदस्योंके मात्र प्रसन्नचित्त रहनेसे घरकी ३०% शुद्धि हो जाती है ।
१२. घरकी रंगाई और पुताई समय-समयपर कराते रहें | ।घरके पर्दे, दीवारें, चादरें काले, हरे, बैगनी रंगोंके न हों, यह ध्यानमें रखें
१३. घरमें कृत्रिम और प्लास्टिकके फूलसे सजावट न करें ।
१४. घरमें दूरदर्शन संचपर रज-तम प्रधान धारावाहिक, भुतहा फिल्में या धारावाहिक न देखें ।
१५. फेंग-शुई, यह एक आसुरी पद्धति है । इससे घरकी शुद्धि नहीं, वरन काली शक्ति बढती है ।
१६. इससे सम्बंधित सर्व सामग्रीका उपयोग पूर्णत: टालें
१७. घरमें नैसर्गिक धूप और हवाके लिए प्रतिदिन द्वार और खिड़की खोलें, इससे घरकी शुद्धि होती है
१८. घरमें पितरोंके चित्र दृष्टिके सामने न रखें
१९. घरके किसी एक कोने या कमरेमें विशेषकर भण्डार-गृह (स्टोर रूम) में कबाड एकत्रित न रखें । वह एक प्रकारसे अनिष्ट शक्तियोंको घरमें रहने हेतु आमंत्रण देना है ।
२०. घरके शौचालय और स्नानगृहको सदैव स्वच्छ रखें ।
२१. घरके पूजाघरको शास्त्रानुसार रचनाकर, वहां प्रातःकाल एवं संध्या आरती करें ।
२२. घरमें फिल्मी अभिनेता और अभिनेत्रियों एवं आजके राजनेता, क्रिकेट खिलाड़ी, इत्यादिके चित्र न लगाएं, इससे भी रज-तम प्रधान स्पंदन घरमें निर्मित होते हैं ।
२३. घरमें सात्त्विक पुष्प, जैसे गेंदा, जाई, जुई, राजनीगंधा, चंपा, चमेली जैसे पौधे लगाएं ।
२४. घरके सामने कांंटेदार पौधे जैसे कैक्टस (cactus) इत्यादि न लगाएं ।
२५. घरके बाहर भयानक मुखौटे टांंगकर न रखें  – तनुजा ठाकुर



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