क्यों करें अखण्ड नामस्मरण ? (भाग – ९)


नामस्मरण सहज अवस्थाकी साधना है, अतः यह सभीके लिए करना सरल है । इसमें किसी भी प्रकारके देश, काल इत्यादिका बन्धन नहीं है । हम नामजप कभी भी, कहीं भी और किसी भी अवस्थामें कर सकते हैं । ईश्वरने ही देश, काल, देह इत्यादिका निर्माण किया है; अतः इस साधनामें हम सरलतासे अपने उत्तरदायित्वको निभाते हुए साधनारत रह सकते हैं । इसी साधनाके माध्यमसे कोई कुम्हार, कोई सुनार, कोई बुनकर, कोई चर्मकार (चमार) तो कोई कसाईका कार्य करते हुए ईश्वरको प्रसन्न कर अपने जीवनको सार्थक करते हैं; क्योंकि इस साधनामें शुचिता-अशुचिताका भी बन्धन नहीं है, जिसकी पुष्टि ये सुभाषित भी करती हैं –
न देशनियमस्तस्मिन् न कालनियमस्तथा।
नोच्छिष्टेऽपि निषेधोऽस्ति श्रीहरेर्नामिन् लुब्धक॥

अर्थ : व्याध ! श्रीहरिके नामस्मरणमें न तो किसी देश-विशेषका और न कालविशेषका ही नियम है । जूठे अथवा अपवित्र होनेपर भी नामोच्चारणके लिए कोई निषेध नहीं है ।
चक्रायुधस्य नामानि सदा सर्वत्र कीर्तयेत् ।
नाशौचं कीर्तने तस्य स पवित्रकरो यत:॥

अर्थ : चक्रपाणि श्रीहरिके नामोंका सदा और सर्वत्र कीर्तन करें । उनके कीर्तनमें अशौच बाधक नहीं है; क्योंकि वे भगवान स्वयं ही सबको पवित्र करनेवाले हैं ।



Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

सम्बन्धित लेख


विडियो

© 2021. Vedic Upasna. All rights reserved. Origin IT Solution