आजकल हम भोजनका अत्यधिक अपव्यय करते हैं । शासकीय अन्न भण्डारोंमें तो करोडों टन अन्न सड जाता है । जबकि आज भी हमारे अनेक कृषक दरिद्रता और भुखमरीके कारण आत्महत्या करते हैं । कई स्थानोंपर भुखमरीके कारण दरिद्र व्यक्ति अपने रक्त, यकृत (किडनी) और यहां तक अपने कोखके जन्मे बच्चे तकको अपनी भूख मिटाने हेतु […]
घटना उन दिनोंकी है जब भारतपर चंद्रगुप्त मौर्यका शासन था और आचार्य चाणक्य यहांके महामंत्री थे और चन्द्रगुप्तके गुरु भी थे उन्हींके मार्गदर्शनमें चन्द्रगुप्तने भारतकी सत्ता प्राप्त की थी । चाणक्य अपनी योग्यता और कर्तव्यपालनके लिए देश विदेशमें प्रसिद्ध थे । उन दिनों एक चीनी यात्री भारत आया । यहां भ्रमण करते हुए जब वह […]
एक बार तोतापुरी महाराज स्वामी विवेकानंदके गुरु रामकृष्ण परमहंससे मिलने दक्षिणेश्वर मन्दिर पधारे । स्वामीजी उन्हें गुरु मानते थे । तोतापुरी महाराजका नियम था कि वे तीन दिनसे अधिक कहीं नहीं रुकते थे; किंतु रामकृष्ण परमहंसजीकी विलक्षणताने उन्हें अधिक समय तक रुकनेके लिए विवश कर दिया । स्वामीजीकी प्रतिभासे प्रभावित तोतापुरीजी महाराज दक्षिणेश्वरमें पूरे ग्यारह […]
अत्यंत पुरानी कथा है। किसी गांवमें दो भाई रहते थे। बडे भाईका विवाह हो चुका था । उसके दो बच्चे भी थे; परंतु छोटा भाई अभी कुंवारा था। दोनों साझा खेती करते थे। एक बार उनके खेतमें गेहूंकी फसल पक कर तैयार हो गई। दोनोंने मिलकर फसल काटी और गेहूं तैयार किया। इसके बाद दोनोंने […]
बंगालके उच्च कोटिके संत स्वामी रामकृष्ण परमहंस, एक दिन गंगा किनारे टहल रहे थे | साथमें उनके कुछ शिष्य भी थे | नदीमें मछुआरे मछ्ली पकड रहे थे | स्वामीजी जालमें फांसी मछलियोंकी गतिविधि ध्यानसे देख रहे थे | उन्होंने देखा कुछ मछलियां जालमें निश्चल पडी हुईं थीं जैसे उन्होंने अपनी नियति स्वीकार कर ली […]
चैतन्य महाप्रभु निरंतर भावावस्थामें भगवद् भक्तिमें लीन रहते थे । चैतन्य महाप्रभुसे उनके एक शिष्य ने पूछा, ‘प्रभु ! इतने भक्त भावविभोर होकर आपके पास कीर्तन करते हैं, परंतु उनका जीवन वहींका वहीं बना क्यों रहता है ? साधनामें और प्रगाढता विकसित क्यों नहीं होती ?’ चैतन्य महाप्रभुने कहा, ‘सत्य यह है कि उनमें […]
एक बार राजा युद्धिष्ठिरके यहां एक किसानका प्रकरण आया । उसके खेतमें चोरी करते हुए चार लोग पकडे गये थे । उनमेंसे एक अध्यापक था, दूसरा कोतवाल, तीसरा व्यापारी और चौथा कारीगर । किसानने युधिष्ठिरसे उन्हें समुचित दण्ड देनेको कहा । युधिष्ठिरने कारीगरको एक माह, व्यापारीको एक वर्ष, सैनिकको पांच वर्ष और अध्यापकको दस वर्ष […]
एक समय किसी शिष्यने अपने गुरुसे विनम्रतापूर्वक पूछा-‘गुरुजी, कुछ व्यक्ति कहते हैं कि जीवन एक संघर्ष है, कुछ अन्य कहते हैं कि जीवन एकनाट्य(नाटक) है और कुछ जीवनको एक उत्सवकी संज्ञा देते हैं | इनमेंसे किसका कथन सत्य है ? ’गुरु जी ने अत्यंत धैर्यपूर्वक उत्तर दिया, ‘पुत्र ! जिन्हें गुरु नहीं मिले उनके लिए जीवन […]
आदि शंकराचार्य जब संपूर्ण देशमें भ्रमण कर शास्त्रार्थ कर धर्म संस्थापनाका कार्य कर रहे थे । और परम्परा अनुसार अन्य विद्वानोंको शास्त्रार्थके लिये कहते । और हार जानेपर हार जानेवालेको अपनी माला उतारकर उनके गलेमें डालनी होती थी । शंकराचार्य परकाया प्रवेश विद्याके निष्णात साधक थे । जब मंडन मिश्र और शंकराचार्यका शास्त्रार्थ हुआ । […]
किसी नगरमें एक भिक्षुक भ्रमण करता था, उसके केश श्वेत एवं लंबे थे और हाथमें एक दण्ड (डण्डा) रहता था । विदीर्ण वस्त्रोंमें (चिथड़ोंमें) लिपटा उसका ढीला-ढाला और वलीयुक्त (झुर्रियोंसे भरा) वृद्धावस्थाका शरीर । कंधेपर झोली लिये रहता था । वह प्रायः पुनः-पुनः उस गठरीको खोलता, उसमें बडे जतनसे लपेटकर रखे रंजित (रंगीन) कागदकी गड्डियोंको निकालता, […]