संत वाणी

सन्त वाणी


देहमें मलीनता आनेके कारण : १. नेत्र : परनारीको देखना (उसे नारी नहीं ,देवी, मां या बहन स्वरुपमें देखें ) २. कान : परनिंदा सुनना ३. जिह्वा : दूसरेके दोष बताना ४. मन : विषयोंका विचार करना। – पूज्य डॉ. वसंत आठवले

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संतवाणी


भक्तोंद्वारा सांसरिक जगतमें आचरणमें लाने योग्य  विविध भाव १. समभाव अ. अपने समान आयुवाले व्यक्तिसे भाई अथवा बहनसा व्यवहार रखें आ  आयुमें ज्येष्ठों व्यक्तिने दूसरोंसे  पुत्रसा व्यवहार करें । इ  छोटे बच्चोंके साथ  छोटे बच्चों समान  व्यवहार करें । २. आत्मीय भाव :सभीके लिये आत्मीय भाव हो। अर्थात  सबसे  जैसे स्वयंसे प्रेम करते हैं वैसी […]

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संस्कृत भाषाका अनादर करनेवाले भारतीयोंका घोर अधःपतन !


भारतीयोंका प्राचीन वाङ्मय एवं कला जाननेकी उत्कट इच्छा जर्मनीमें है; किंतु भारतके कर्इ व्यक्तियोंको संस्कृतका कुछ भी ज्ञान नहीं है । – परम पूज्य डॉ. काटे स्वामी

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आस्तिक होते हुए भी जो साधना न करे वह नास्तिकसे बुरा है – परम पूज्य भक्तराज महाराज


भावार्थ : किसी रोगकी औषधि ज्ञात होते  हुए भी उसे न लेना अधिक अयोग्य है | अस्तिकको ईश्वरके अस्तित्वका ज्ञान होते  हुए भी उसकी प्राप्ति हेतु साधना न करना, यह नास्तिकसे अर्थात  जिसे ईश्वरके अस्तित्वपर ही विश्वास नहीं, उससे भी अधिक बुरा है । जिसने अपने ज्ञानका उपयोग नहीं किया वह, अज्ञानीसे अर्थात नास्तिकसे अधिक […]

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अन्तर्मनके षडरिपु नष्ट होनेपर ही आध्यात्मिक प्रगति संभव है !


माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर । कर का मन का डा‍रि दे, मन का मनका फेर॥  – सन्त कबीर अर्थ : यदि अपने स्वभावदोष और अहंके लक्षण दूर करने हेतु सतर्कतासे प्रयास न किया जाये तो सम्पूर्ण जीवन माला फेरने पर भी कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता ! अतः साधकको  दोषोंका […]

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कबीर वाणी


हरी किरपा तब जानिए दे मानव अवतार गुरु किरपा तब जानिए मुक्त करे संसार अर्थ : यदि मनुष्य देहकी प्राप्ति हुई है तो उसे ईश्वरकृपा समझें और यदि इस भवसागरसे मुक्त हो गए तो उसे गुरुकृपा जानें !

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संत वाणी


शांति आपकी नैसर्गिक अवस्था है । यह तो मन है जो इस मूल अवस्थामें व्यवधान डालता है । – रमण महर्षि

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स्वामी रामकृष्ण परमहंस


क्षुद्र बुद्धिवाले रिद्धी –सिद्धिकी प्राप्ति चाहते हैं जैसे – रोगका उपाय करना, जलपर चलना, कानूनी अभियोग जीत लेना इत्यादि | ईश्वरके सच्चे भक्तको ईश्वरके चरणके सिवाय और किसी भी वस्तुकी चाह नहीं होती ! – स्वामी रामकृष्ण परमहंस

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एक क्षण भी व्यर्थ व्यतीत न करते हुए सातत्यसे साधना करनेका कारण


१). अपने पूर्व जन्मके पुण्यसे हमें मनुष्य जन्म प्राप्त हुआ है | मनुष्य जन्ममें ही साधना करना सरल होता है, मनुष्य जन्ममें ही अध्यात्मिक प्रगति हो सकती है । अगला जन्म मनुष्यका मिलेगा यह आवश्यक नहीं होता । २). शारीरिक एवं मानसिक स्वस्थता होनेपर हम कोई भी साधना कर सकता है । भविष्यमें किसी व्याधि […]

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संतवाणी


पृथ्वीपर पति-पत्नीका सम्बन्ध, यह सबसे निकटतम सम्बन्ध है | पतिसे जुडने हेतु, पतिने, पत्नीके त्यागका स्मरण रखना चाहिए | विवाह्के पश्चात् पत्नी अपना नाम, अपने माता-पिता, अपने सगे-सम्बन्धियोंका त्याग करती है | पतिने उसे प्रेमका भेंट देकर उसकी नूतन यात्राको अच्छेसे आरम्भ करना चाहिए | पतिके नम्र होनेसे विवाहके पश्चात् भी उसे आदर प्राप्त होता […]

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