हिंदुओं, शायरी और गजल न सुना करें इसमें ‘शराब’ और ‘शबाब’ के सिवा कुछ नहीं होता जो स्त्रीके प्रति हमारे दृष्टिकोणको वासनायुक्त कर हमारे मन एवं बुद्धिके ऊपर काला आवरणको बढा देती है ! वासनायुक्त पुरुषको हमारी भारतीय संस्कृतिमें असुरकी उपमा दी गयी है, रावण महापंडित थे परंतु वासनाने उन्हें अंधा कर दिया और उसके […]
क्या उर्दूके साहित्यकार अपने साहित्यमें संस्कृत या तत्सम शब्द डालते हैं – नहीं उनके वहां तो उस साहित्यकारके विरुद्ध सीधे ही फतवा निकल आयेगा। क्या अपने कभी किसी आंग्लभाषा साहित्यमें हिन्दी या संस्कृत शब्दका बिना कारण प्रयोग होते देखा है, यद्यपि सच्चाई यह है कि धर्म जैसे शब्दका भी आंग्लभाषामें कोई योग्य शब्द नहीं है […]
वस्तुत: साधना जितनी शीघ्र आरंभ कर सकें उतना ही अच्छा होता है । विद्यार्थी जीवनमें मनकी एकाग्रता और आत्मनियंत्रण(ब्रह्मचर्य), यह दोनों साध्य करनेके लिए आत्मबल आवश्यक होता है। यह साधनाद्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। आजके विद्यार्थियोंको साधनाकी नितांत आवश्यकता है, हमारी निधर्मी सरकारने साधनाका महत्व आजके युवा मनपर अंकित नहीं किया, परिणामस्वरूप आज […]
कुछ दिवस पूर्व एक साधक के मित्र मंडली के साथ एक दुर्जन प्रवृत्ति के नेता से मेरी भेंट हुई ! बात ही बात में वे कहने लगे कलियुग में थोड़े ही ईश्वर नरसिंह भगवान की तरह प्रकट होकर किसी दुष्ट का वध करेंगे ! मैंने कहा “यह आपने अच्छी बात कही है इसलिए कलियुग में […]
कुछ अकर्मण्य हिंदुओंका मात्र एक ही कार्य होता है , जो अच्छा कर रहा हो उसे हतोत्साहित करना, उनके चूक निकालना और उसीमें अपना बडप्पन समझना ! ऐसे हिंदुओंसे सावधान रहें ! वे जन्मसे तो हिन्दु होते हैं; परंतु उनकी प्रवृत्ति आसुरी होती है !-तनुजा ठाकुर
जून २०१३ इटली में एक सर्व धर्म संगोष्ठीमें मैंने कहा कि हिन्दू धर्म , सिक्ख, बौद्ध , जैन एवं ऐसे अनेक पंथोंकी जननी है तो मेरी इस बात से वहाँ उपस्थित अन्य हिन्दू पंथों के प्रतिनिधियों की भृकुटी तन गयी क्योंकि उन्हें अब हिन्दुत्त्वसे किसी भी प्रकारका संबंध अच्छा नहीं लगता है ! तुलसीदासजी ने कहा […]
कल एक व्यक्ति ने कहा ” मेरे माता-पिता चाहते थे कि मैं अपने व्यावहारिक जीवन में अत्यधिक प्रगति करूंं उनकी इस इच्छा को पूर्ण करें के क्रम में मैंने उच्च शिक्षा ग्रहण की और विदेश आ गया। यहांं पर अच्छे पद और अच्छी कंपनी में नौकरी करने लगा और अब यहींका स्थायी निवासी हो गया हूंं […]
अधर्म करनेवाले, राष्ट्रद्रोह करनेवाले और व्यभिचार करनेवालेको ईश्वरीय विधान अनुसार दण्ड मिलता ही है, चाहे माध्यम कोई भी बने । यदि पाप अधिक बढ जाए तो ईश्वर स्वयं अवतरित होकर दुर्जनोंका संहार करते हैं । अवतार या ईश्वर इतने दयालु होते हैं कि उनके प्रतापके परिणामस्वरूप दुर्जन भी उनके माध्यमसे तर जाते हैं ! जो […]
जब चित्रपट (फिल्मी) जगतका कार्य आरम्भ हुआ था, तब किसी भी सभ्य कुलकी स्त्री इसमें अभिनय करने हेतु सिद्ध नहीं थी और मात्र कुछ वैश्याओंने, इसमें अभिनय हेतु आवेदन दिए थे । आजसे कुछ दशक पहलेके लोगोंमें इतना द्रष्टापन तो था कि यह सभ्य स्त्रियोंके कार्य करनेका क्षेत्र नहीं है और उन्हें सम्भवत: यह भी […]
वर्तमान समयमें हिंदुओंमें राष्ट्राभिमान, धर्माभिमान, स्वभाषाभिमानका स्तर इतना निम्न हो चुका है कि हमारी अधिकांश कृतिमें पाश्चात्यीकरण एवं तथाकथित धर्मनिरपेक्षतावादकी दुर्गंध आती है ! फिल्मोंके नाम, प्रतिष्ठानोंके नाम, अपने बच्चोंके नाम, सभीमें हम अपनी संस्कृत भाषाका प्रयोग छोड शेष सभी भाषाका प्रयोग करनेको आधुनिकता कहते हैं ! सम्पूर्ण विश्वमें भारत ही एक मात्र देश होगा […]