धर्म

राजनीतिका प्राण धर्म है !!!


क्या आपको ज्ञात है कि राजा दशरथके दरबारमें ॠषि वसिष्ठ, महर्षि गौतम, महर्षि वामदेव, जाबाल ॠषि, कश्यप ॠषि, दीर्घायु मार्कण्डेयजी, ॠषि सुयज्ञ, महर्षि कात्यायन आदि अनेक ॠषि-मुनि मन्त्री पदपर विराजमान थे । इन ब्रह्मर्षियोंके साथ पूर्व परम्परागत ॠत्विज (ब्रह्मज्ञानी ) भी मन्त्रीका कार्य करते थे तथा सम्पूर्ण राज्यकी व्यवस्था इनके परामर्शसेकी जाती थी । वाल्मीकि रामायणमें […]

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सुदर्शन चक्रधारी भगवान श्रीकृष्ण


वर्तमान समयमें तारक रूप वाले मुरलीधर श्रीकृष्णकी नहीं, अपितु मारक रूपवाले सुदर्शन चक्रधारी भगवान श्री कृष्णकी साधना करने वाले एवं राष्ट्र और धर्मकी रक्षा करनेवाले तेजस्वी धर्मयोद्धा साधकोंकी आवश्यकता है !-तनुजा ठाकुर

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पुनर्निर्माणसे पूर्व महाविनाश


जब वाहनके एक या दो पुर्जे बिगड जाएं तो उस परिवर्तित कर सकते हैं; परन्तु जब सारे पुर्जे बिगड जाए और वाहन  खटारा हो जाए तो उस गाडीको कबाडीके यहां बेच, नयी गाडी लेनी चाहिए, वैसे ही जब समाजमें सब स्तरपर भ्रष्टाचार और व्यभिचार व्याप्त हो जाए तो सिवाय क्रांतिके दूसरा कोई पर्याय शेष नहीं […]

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विज्ञानके इतनी प्रगति कर लेनेपर भी इतने प्रलयंकारी प्राकृतिक आपदाएं क्यों आती रहती हैं ?

प्रश्न:

क्या आपने कभी सोचा है कि विज्ञान के इतनी प्रगति कर लेने पर भी इतने प्रलयंकारी प्राकृतिक आपदाएं क्यों आती रहती हैं और विनाश लीला खेल कर सारी वैज्ञानिक उपलब्धियोंकी पुंगी बजाकर क्यों चली जाती हैं ?


उत्तर : धर्माधिष्ठित राष्ट्र ही सुखी, समृद्ध और प्राकृतिक प्रकोपसे वंचित रह सकता है ! किसी भी निधर्मी और अहिन्दु पद्धतिकी राजकीय व्यवस्थामें प्राकृतिक आपदाओंको रोकनेकी क्षमता नहीं होती ! इसलिए वेदोंमें देवोंको यज्ञमें आहुति देकर उसे प्रसन्न रखनेकी प्रक्रिया बतायी गयी है ! जैसे लौकिक सरकारके मंत्री होते हैं वैसे ही इस सृष्टिके कर्ता-धर्ताने […]

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‘वचनं किम् दरिद्रता’वाले जन्म-हिन्दुओंसे सदैव रहें सावधान !


अनेक अकर्मण्य हिन्दू कुछ करते तो नहीं; परन्तु टीका करना, चूक निकालना, जो कुछ अच्छा कर रहें हों, उन्हें अपनी तीक्ष्णसे शब्दोंसे हतोत्साहित करना, उनका मूल स्वाभाव होता है और वे इसीमें अपना बडप्पन समझते हैं ! ऐसे ‘वचनं किम् दरिद्रता’वाले हिन्दुओंसे सदैव सावधान रहें ! अकर्मण्य हिन्दुओंको जो राष्ट्र एवं धर्म निमित्त कुछ भी […]

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नारीको भोग्या समझकर उसका शोषण करनेवालोंका कुलनाश निश्चित !


अपनी वासनाको अनियन्त्रित कर, पर-स्त्रीपर उसका प्रदर्शन करनेवालेको पुरुष नहीं ‘असुर’ कहते हैं और पर-स्त्रीको मातृशक्तिके रूपमें देखने वालेको ‘पुरुष’ कहते हैं । जिन राजाओंने पर-स्त्रीको भोग्या समझ उसका शोषण किया, उनकी कीर्ति और वंशका नाश शीघ्र हुआ है, इतिहास इसका साक्षी है । वैदिक संस्कृतिमें, जिन्होंने युद्धमें पकडी गई स्त्रियोंको भी मां समान समझा, […]

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